बेटी के साथ धरने पर बैठी मां, दोनों बिलखते हुए सरकार से कर रहीं एक ही मांग

वीडियो डेस्क।  मध्य प्रदेश के कटनी कलेक्ट्रेड कार्यालय के बाहर अपनी बेटी के साथ धरने पर बैठी महिला प्रशासन- शासन दोनो की नीतियों से परेशान है। लोन के लिए वर्षो से दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद जब कुछ हासिल नहीं हुआ तब महिला ने कुंभकर्णी निद्रा में सो रहे अफसरों को जगाने अनिश्चित भूख हड़ताल कर धरने पर बैठने मजबूर होना पड़ा। धरने पर अपनी बेटी के साथ बैठी महिला रश्मि जायसवाल ने बताया कि वह एक तलाकशुदा है। वह अपनी 16 वर्षीय पुत्री के साथ अकेली रहती है। पूर्व में सरकारी नौकरी के लिए उनके द्वारा प्रयास किए गए लेकिन सफलता नही मिलने पर उनके द्वारा स्वयं का व्यवसाय के लिए कलेक्ट्रेड कार्यालय स्थित उद्योग विभाग में लोन के लिए एप्लाई किया लेकिन उनका फार्म रिजेक्ट किया जाता रहा। उद्योग विभाग उनके द्वारा फॉर्म में डाले गए पते को गलत बताता है। जबकि उनके बैंक खाते व आधार कॉर्ड में वही पता दर्शाया है जो उन्होंने लोन फॉर्म में डाला था। कई दिनों तक दफ्तर के चक्कर काटने के बाद भी उनका फार्म रिजेक्ट किया गया तब उनके द्वारा कलेक्ट्रेड परिसर के बाहर बैठ कर प्रदर्शन करने मजबूर होना पड़ा। 

| Updated : Oct 01 2020, 02:33 PM
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वीडियो डेस्क।  मध्य प्रदेश के कटनी कलेक्ट्रेड कार्यालय के बाहर अपनी बेटी के साथ धरने पर बैठी महिला प्रशासन- शासन दोनो की नीतियों से परेशान है। लोन के लिए वर्षो से दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद जब कुछ हासिल नहीं हुआ तब महिला ने कुंभकर्णी निद्रा में सो रहे अफसरों को जगाने अनिश्चित भूख हड़ताल कर धरने पर बैठने मजबूर होना पड़ा। धरने पर अपनी बेटी के साथ बैठी महिला रश्मि जायसवाल ने बताया कि वह एक तलाकशुदा है। वह अपनी 16 वर्षीय पुत्री के साथ अकेली रहती है। पूर्व में सरकारी नौकरी के लिए उनके द्वारा प्रयास किए गए लेकिन सफलता नही मिलने पर उनके द्वारा स्वयं का व्यवसाय के लिए कलेक्ट्रेड कार्यालय स्थित उद्योग विभाग में लोन के लिए एप्लाई किया लेकिन उनका फार्म रिजेक्ट किया जाता रहा। उद्योग विभाग उनके द्वारा फॉर्म में डाले गए पते को गलत बताता है। जबकि उनके बैंक खाते व आधार कॉर्ड में वही पता दर्शाया है जो उन्होंने लोन फॉर्म में डाला था। कई दिनों तक दफ्तर के चक्कर काटने के बाद भी उनका फार्म रिजेक्ट किया गया तब उनके द्वारा कलेक्ट्रेड परिसर के बाहर बैठ कर प्रदर्शन करने मजबूर होना पड़ा। 

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