कभी पाप माना जाता था ये रिश्ता, मिलती थी कालापानी की सजा

समलैंगिक संबंधों को लेकर इंडियन कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को एक साल हो चुका है। 6 सितंबर 2018 को ही इसे वैध करार दिया गया था।  

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नई दिल्ली: समलैंगिक संबंधों को लेकर इंडियन कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को एक साल हो चुका है। 6 सितंबर 2018 को ही इसे वैध करार दिया गया था।  

इस कानून को धरातल पर आने में कई साल लग गए। कई सालों के विरोध और प्रोटेस्ट के बाद एलजीबीटी को ये अधिकार मिला। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था। इसमें 10 साल या फिर जिंदगीभर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती। 

अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती। इतना ही नहीं, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था। समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है। 

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