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हम ये भी हैं और वो भी | हौसले की नई परिभाषा | #NewsSeBreak with Vineet Panchhi
कभी सोचा है, किसने कहा कि हमें एक ही काम करना चाहिए? कि अगर हम डॉक्टर हैं, तो सिर्फ़ इलाज करें? दुकानदार हैं, तो बस सामान बेचें? क्यों हर इंसान को एक टैग, एक खांचे में बांध दिया गया है? "Hum Ye Bhi Hain, Aur Woh Bhi" एक नज़्म नहीं, एक याद है — कि हम सबके अंदर एक नहीं, कई हुनर हैं। और ये हुनर आज के दौर में हमारे सबसे बड़े हथियार हैं। ये कविता उस सोच को तोड़ती है जो हमें सीमाओं में कैद करना चाहती है, और दावत देती है उन ख्वाबों को, जो आज तक दिल में दबे पड़े थे। खुद को पहचानिए। नया कुछ सीखिए। नया कुछ करिए। क्योंकि हम एक नहीं, अनेक हैं।