भारतीय संस्कृति में क्यों है हाथ जोड़कर नमस्ते करने की परंपरा, जानिए इसके पीछे के कारण

तेजी से पूरी दुनिया में फैल रहा कोरोनावायरस ने सभी की नींद उड़ा दी है। इस स्थिति में कई देशों में लोग हाथ मिलाने से बच रहे हैं और अभिवादन के लिए नमस्ते को प्राथमिकता दे रहे हैं। नमस्ते करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग और परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इस परंपरा के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। जानिए इस पंरपरा से जुड़ी खास बातें

| Updated : Mar 08 2020, 06:40 PM
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तेजी से पूरी दुनिया में फैल रहा कोरोनावायरस ने सभी की नींद उड़ा दी है। इस स्थिति में कई देशों में लोग हाथ मिलाने से बच रहे हैं और अभिवादन के लिए नमस्ते को प्राथमिकता दे रहे हैं। नमस्ते करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग और परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इस परंपरा के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। जानिए इस पंरपरा से जुड़ी खास बातें...

- किसी व्यक्ति से नमस्ते करते समय हमें अपने दोनों हाथों की एक जैसी स्थिति में रखना चाहिए।
- सभी उंगलियों और अंगूठे एक समान रखकर दोनों हाथों को मिलाना चाहिए। इसके बाद दोनों हाथों को अपनी हृदय से लगाकर रखना चाहिए।
- इसका भाव यही है कि हम हमारे हृदय से आपका सम्मान करते हैं, आपके सामने हम नम हैं यानी विनम्र हैं।
- इस विधि से प्रणाम करने पर हम दूसरों से सीधे संपर्क में नहीं आते हैं। दूर से ही नमस्ते करने पर दोनों लोगों का शरीर एक-दूसरे से स्पर्श नहीं होता है।
- ऐसी स्थिति में अगर किसी एक व्यक्ति को कोई बीमारी है तो वह दूसरे व्यक्ति तक नहीं पहुंचती है।
- ये परंपरा बीमारियों को फैलने से रोकने में बहुत कारगर है। इसीलिए दुनियाभर में आज इस विधि से ही अभिवादन करने पर जोर दिया जा रहा है।
- पं. शर्मा के अनुसार दाहिना हाथ आचार धर्म और बायां हाथ विचारों का होता है। नमस्कार करते समय दायां हाथ बाएं हाथ से जोड़ना होता है।
- शरीर में दाईं ओर इडा और बाईं ओर पिंगला नाड़ी होती है। इसलिए नमस्कार करते समय इडा और पिंगला के पास पहुंचती है और सिर श्रृद्धा से झुका होता है। हाथ जोड़ने से शरीर के रक्त संचार का प्रवाह व्यवस्थित होता है। विचारों की सकारात्मकता बढ़ती है और नकारात्मक विचार खत्म होते हैं।
 

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