दिल्ली. 'लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में...,तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में!' मशहूर शायर बशीर बद्र का यह शेर दंगों की भयावहता दिखाने के लिए काफी है। CAA के विरोध-समर्थन से जुड़े आंदोलनों में घुसे असामाजिक तत्वों और अपनी-अपनी राजनीति रोटियां सेंकने में लगे नेताओं की बयानबाजियों ने दिलवालों की दिल्ली सुलगा दी है। दंगाइयों ने सिर्फ दूसरों के घर नहीं फूंके, बल्कि अपनी सोच-समझ और खुद के इंसान होने को भी आग में झोंक डाला है। दंगे अचानक नहीं होते..दंगे प्रायोजित होते हैं। इन प्रयोजनों में राजनीति और मजहबी कट्टरता दोनों शामिल होती है। जिस दिल्ली पे दुनिया को नाज रहा..वो दिल्ली..दिल्लीवालों की करतूतों से शर्मसार है। भारत दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन यह हिंसा उसके प्रगति में ब्रेक लगा रही है। देश में दंगों का पुराना इतिहास रहा है, जिनके पीछे हमेशा नापाक मंसूबे रहे हैं। अंग्रेजों ने हिंदुस्तान को तोड़ने साम-दाम-दंड और भेद..हर तरीका अपनाया। 1857 की क्रांति के बाद से ही भाईचारे में जहर घोलने की कोशिश की गई थी। 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद अंग्रेजों ने देश की जनता को आपस में लड़वाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आइए..देखते हैं देश में दंगों की शर्मनाक कहानी..ये फोटो और जानकारी देने का सिर्फ यही उद्देश्य है कि लोगों की आंखों पर पड़ा..घृणा का पर्दा हटे..वे हिंसा छोड़कर..एकजुट होकर देश की प्रगति में हाथ बढ़ाएं...इनमें कुछ फोटो संबंधित घटनाओं के नहीं है..