क्या बांग्लादेश में दंगे महज़ संयोग हैं या सत्ता की सोची-समझी रणनीति? ढाका जलता रहा, लेकिन 2 घंटे तक पुलिस-आर्मी नदारद क्यों रही? चुनाव टालने, अवामी लीग बैन और बीएनपी की कमजोरी के बीच क्या यूनुस सरकार अराजकता के सहारे सत्ता का रास्ता बना रही है?
Bangladesh Violence: बांग्लादेश इन दिनों एक बार फिर गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। राजधानी ढाका समेत कई बड़े शहरों में अचानक भड़की हिंसा ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। सवाल यह नहीं है कि दंगे क्यों हुए, बल्कि बड़ा सवाल यह है कि जब दंगे हो रहे थे, तब सरकार और सुरक्षा एजेंसियां कहां थीं? गुरुवार देर रात कट्टरपंथी युवाओं के समूह सड़कों पर उतर आए। आगजनी, नारेबाजी और तोड़फोड़ शुरू हो गई। कई इलाकों में दुकानों और सरकारी संपत्तियों को निशाना बनाया गया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि करीब दो घंटे तक पुलिस या आर्मी को मौके पर नहीं भेजा गया। यही से यूनुस सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं।

ढाका में हिंसा के दौरान सुरक्षा बल क्यों गायब रहे?
आमतौर पर ढाका जैसे संवेदनशील शहर में मामूली तनाव पर भी पुलिस और सेना तुरंत हरकत में आ जाती है। लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग थे। स्थानीय रिपोर्ट्स के मुताबिक, दंगे देर रात शुरू हो चुके थे। सोशल मीडिया पर हिंसा के वीडियो वायरल हो रहे थे। लोग मदद की गुहार लगा रहे थे। इसके बावजूद करीब 2 घंटे तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
क्या यह प्रशासनिक चूक थी? या फिर जानबूझकर आंखें बंद की गईं?
क्या यूनुस सरकार चुनाव टालने की तैयारी में है?
- राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मौजूदा हालात अचानक पैदा नहीं हुए। 12 फरवरी को प्रस्तावित चुनाव इस पूरे घटनाक्रम की धुरी माने जा रहे हैं।
- अवामी लीग पहले ही बैन है।
- बीएनपी कमजोर स्थिति में है।
- पार्टी प्रमुख तारिक रहमान 25 दिसंबर को लंदन से ढाका लौटने वाले हैं।
- ऐसे में यदि हालात सामान्य रहते, तो चुनावी मैदान में यूनुस सरकार को कड़ी चुनौती मिल सकती थी।
- विशेषज्ञों का कहना है कि अराजकता फैलाकर चुनाव टालने का माहौल बनाया जा रहा है।

कट्टरपंथी जमात को किसका संरक्षण हासिल है?
दंगों में शामिल युवाओं को लेकर एक और बड़ा सवाल उठता है-इनके पीछे कौन है? सूत्रों और राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि कट्टरपंथी जमात को मौजूदा सत्ता का मौन समर्थन हासिल है। जमात के कार्यकर्ता खुलकर सड़कों पर उतरे। पुलिस की निष्क्रियता ने उन्हें और खुली छूट दे दी। अगर अवामी लीग और बीएनपी दोनों हाशिये पर चले जाते हैं, तो चुनाव में सबसे बड़ा फायदा जमात को हो सकता है।
अवामी लीग बैन और बीएनपी की कमजोरी से किसे फायदा?
बांग्लादेश की राजनीति इस वक्त तीन हिस्सों में बंटी दिखती है-
- अवामी लीग-बैन के कारण बाहर
- बीएनपी-नेतृत्व और संगठन दोनों कमजोर
- जमात-मौके की तलाश में मजबूत होती हुई
राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि अगर मौजूदा हालात बने रहे और चुनाव होते हैं, तो जमात की बड़ी जीत संभव है। और इसी रास्ते से यूनुस के दोबारा राष्ट्रपति बनने की संभावना भी बनती है।

क्या अराजकता सत्ता में बने रहने की रणनीति है?
इतिहास गवाह है कि कई देशों में सत्ता बचाने के लिए अराजकता का सहारा लिया गया है।
बांग्लादेश में भी कुछ ऐसा ही पैटर्न दिख रहा है-
- पहले विपक्ष कमजोर किया गया
- फिर कानून-व्यवस्था बिगड़ी
- अब चुनाव टालने का नैरेटिव
- राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब हालात खराब होते हैं, तो सत्ता को असाधारण अधिकार मिल जाते हैं।
दंगों से आम लोगों को क्या नुकसान हुआ?
इस पूरी राजनीतिक लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान आम नागरिकों को झेलना पड़ा।
- दुकानदारों की रोजी-रोटी जली
- लोगों में डर और असुरक्षा बढ़ी
- बच्चों और बुजुर्गों को घरों में कैद रहना पड़ा
- लेकिन इन सबके बीच सरकार की प्राथमिकता शांति नहीं, सत्ता गणित नजर आई।

आगे क्या? बांग्लादेश किस दिशा में जा रहा है?
अगर हिंसा और राजनीतिक खेल ऐसे ही चलता रहा, तो अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा। लोकतांत्रिक छवि को नुकसान होगा। देश लंबे अस्थिर दौर में जा सकता है। फिलहाल तस्वीर धुंधली है, लेकिन इतना साफ है कि दंगों के पीछे की कहानी सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्ता के गलियारों तक जाती है। ये केवल कानून-व्यवस्था की नाकामी नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का संकेत भी मानी जा रही है। 2 घंटे तक पुलिस-आर्मी का न पहुंचना, चुनावी समीकरण और कट्टरपंथी जमात की सक्रियता-ये सभी सवाल खड़े करते हैं। अब देखना यह है कि बांग्लादेश की जनता इस अराजकता को स्वीकार करती है या बदलाव की मांग करती है।


