Kissa UP Ka:जब खुद पुलिस व प्रशासन के दांवपेंच में फंसे थे योगी आदित्यनाथ, पार्टी भी चाहती थी हो जाए गिरफ्तारी

आज हम बात कर रहे हैं योगी आदित्यनाथ से जुड़ी उस घटना की जिसमें वह खुद पुलिस और प्रशासन के दांवपेंच में ऐसा फंस गये कि उनकी पार्टी के ही कुछ नेताओं ने उनकी खिलाफत में कोई कोर कसर बाकी न छोड़ीं। जीं हां हम बात कर रहे हैं फरवरी 1999 में महाराजगंज कोतवाली क्षेत्र के पंचरुखिया में हुए पंचरुखिया केस की। इस केस में उनके लोगों के प्रति प्रेम और उनकी समस्याओं को सुलझाने की दृढ़ इच्छाशक्ति ने ही उन्हें मुश्किलों में डाल दिया। 

Asianet News Hindi | Updated : Feb 28 2022, 03:53 PM
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आज हम बात कर रहे हैं योगी आदित्यनाथ से जुड़ी उस घटना की जिसमें वह खुद पुलिस और प्रशासन के दांवपेंच में ऐसा फंस गये कि उनकी पार्टी के ही कुछ नेताओं ने उनकी खिलाफत में कोई कोर कसर बाकी न छोड़ीं। जीं हां हम बात कर रहे हैं फरवरी 1999 में महाराजगंज कोतवाली क्षेत्र के पंचरुखिया में हुए पंचरुखिया केस की। इस केस में उनके लोगों के प्रति प्रेम और उनकी समस्याओं को सुलझाने की दृढ़ इच्छाशक्ति ने ही उन्हें मुश्किलों में डाल दिया। हालांकि बाद में महंत अवैद्यनाथ की दखल के बाद यह मामला कई बड़े नेताओं के विचार विमर्श से सुलझा।

आपको बता दें 1999 में महाराजगंज के पंचरुखिया में गांव में कब्रिस्तान की जमीन के विस्तार के दौरान ही मुस्लिम समुदाय ने पुराने पवित्र पीपल के पेड़ को अपने मूल स्थान से हटा दिया। इस तरह पीपल का पेड़ हटाया जाना ज्यादातर लोगों को नागवांर गुजरा। प्रदेश में भाजपा सरकार होने के बावजूद जब पुलिस ने इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की तो योगी आदित्यनाथ ने हस्तक्षेप किया और पीपल का नया पेड़ लगाने खुद ही गांव पहुंच गये। शांतनु गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक योगी आदित्यनाथ की जीवनगाथा के अनुसार योगी आदित्यनाथ के गांव में पहुंचने की जानकारी मिलते ही समाजवादी नेता तलत अजीज ने माहौल को सांप्रदायिक बनाने के लिए एक सभा का आह्वान कर लिया। आपको बता दें कि यह वही तलत अजीज है जिन्होंने महाराजगंज की पनियारा सीट से 2017 विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

गांव से वापस आते समय जब योगी आदित्यनाथ का कारवां गुजर रहा था तभी आखिरी गाड़ी पथराव शुरु हो गया। कारवां में योगी आदित्यनाथ की गाड़ी आगे थी और उन्हें फोन पर इस घटना की जानकारी मिली। जानकारी मिलते ही सहयोगियों द्वारा मना किये जाने के बावजूद योगी आदित्यनाथ ने वापस लौटने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि जब हमारे लोग मुसीबत में हों तो हम पीठ दिखाकर कैसे जा सकते हैं। योगी के तलत अजीज की सभा में पहुंचते ही उनकी गाड़ी पर भी पथराव और फायरिंग शुरु हो गयी। इसी बीच जवाबी फायरिंग में तलत अजीज की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी सत्य प्रकाश यादव की गोली लगने से मौत हो गयी। घटना के बाद पुलिस की ओर से योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया गया।

कथिततौर पर पुलिस मुख्यालय से खुफिया जानकारी दी गयी कि अपराधी लाल रंग की टाटा सूमो में था। जिसके बाद पुलिस ने गोरखपुर मंदिर तक सभी तीन नाकों पर लाल रंग की गाड़ी में योगी आदित्यनाथ को ही बैठे देखा और कारंवा को जाने दिया। इस तरह योगी आदित्यनाथ को जाने देना कहीं न कहीं दिखाता है कि गोरखपुर में लोगों के दिलों में उनके लिये क्या स्थान है। भले ही योगी का कारवां मंदिर पहुंच गया हो लेकिन उस दौरान उनके खिलाफ उनकी पार्टी के लोगों ने सियासत शुरु कर दी। बता दें कि फरवरी 1999 में लखनऊ में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार सत्ता पर बैठी थी और पूर्वी क्षेत्र के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी और शिव प्रताप शुक्ला उस दौरान सरकार में मंत्री थे। भले ही यह दोनों नेता सरकार में मंत्री थे लेकिन कहीं न कहीं सियासत में उनके दिन लदने लगे थे और योगी ब्रांड की राजनीति महत्वपूर्ण होती जा रही थी। योगी समर्थक आज भी मानते हैं कि पंचरुखिया केस के दौरान हरिशंकर तिवारी और शिव प्रताप शुक्ला ने यह भर्षक प्रयास किया कि योगी की गिरफ्तारी हो जाए। हालांकि महंत अवैद्यनाथ की दखल के बाद मामला तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बीच बराव के बाद सुलझ सका।

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