बिहार चुनाव 2025 में 1.4 करोड़ 'जीविका दीदी' केंद्र में हैं। नीतीश सरकार ने उन्हें आर्थिक सहायता दी है। वहीं, तेजस्वी यादव ने सरकारी दर्जा, ₹30,000 मानदेय और कर्जमाफी जैसे बड़े वादे किए हैं। सत्ता के लिए दोनों में होड़ है।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जातीय समीकरण, गठबंधन की चालें और नेता–प्रतिनिधियों के बयानबाज़ी के बीच इस बार जो सबसे बड़ा मुद्दा उभर कर सामने आया है, वह है ‘जीविका दीदी’।इस बार बिहार की सियासत में गांव-गांव की महिलाएं केंद्र में हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव दोनों के भाषणों में वादों में “दीदी” शब्द बार-बार गूंज रहा है। राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि इस बार सत्ता की चाबी ‘जीविका दीदियों’ के पास है।
कौन हैं ‘जीविका दीदी’?
‘जीविका दीदी’ असल में सीएम नीतीश कुमार के दिमाग और बिहार सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना की उपज हैं। 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विश्व बैंक की सहायता से “जीविका योजना” की शुरुआत की थी। उद्देश्य था ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना। इस योजना के तहत महिलाएं 10-12 के समूह में स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) बनाती हैं।
सरकार उन्हें कम ब्याज पर लोन देती है ताकि वे पशुपालन, खेती-किसानी, सिलाई, बुनाई या छोटे कारोबार के जरिए अपना जीवन-स्तर सुधार सकें। आज की तारीख में 1.4 करोड़ से अधिक महिलाएं जीविका योजना से जुड़ी हैं, जो राज्यभर में करीब 11 लाख समूह चला रही हैं। इन समूहों को अब तक बैंकों से 57,794 करोड़ रुपये से ज़्यादा का लोन मिल चुका है। नीतीश कुमार दावा करते हैं कि “बिहार की 32 लाख महिलाएं आज ‘लखपति दीदी’ बन चुकी हैं।”
नीतीश कुमार का ‘कैश कार्ड’
चुनाव से ठीक पहले नीतीश सरकार ने जीविका दीदियों के खातों में ₹10-10 हजार की आर्थिक सहायता भेजी। सरकार का कहना है कि यह “महिलाओं को स्वरोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में एक कदम” है। लेकिन विपक्ष ने इसे सीधे तौर पर “चुनावी रिश्वत” करार दिया।
एनडीए के रणनीतिकारों का मानना है कि महिला मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगी, और 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को सीधे बैंक खाते से जोड़ना नीतीश का मास्टरस्ट्रोक है।
तेजस्वी यादव का ‘वादों का बंडल’
वहीं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों को लेकर कई बड़े और साहसिक वादे किए हैं। उन्होंने घोषणा की है कि जीविका दीदियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाएगा। हर दीदी को ₹30,000 मासिक मानदेय मिलेगा। अब तक लिए गए सभी लोन माफ किए जाएंगे।
आगे से जीविका समूहों को 2 साल तक बिना ब्याज के लोन दिया जाएगा। हर जीविका दीदी को ₹5 लाख का बीमा कवर मिलेगा। तेजस्वी ने कहा, “दीदी अब सिर्फ समूह नहीं, परिवर्तन की शक्ति हैं। हमारी सरकार बनेगी तो हर दीदी को उसका हक़ मिलेगा।”
महिलाएं बनीं चुनावी समीकरण की धुरी
बिहार में कुल 6 करोड़ से अधिक मतदाताओं में से लगभग 3 करोड़ महिलाएं हैं। इनमें ग्रामीण इलाकों की महिलाएं सबसे अधिक वोट डालती हैं। यही कारण है कि हर पार्टी “दीदी कार्ड” खेल रही है। जहाँ पहले चुनाव जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमते थे, अब महिला सशक्तिकरण और आर्थिक स्वावलंबन नया एजेंडा बन गया है।
विश्लेषक मानते हैं कि ‘जीविका दीदी’ वर्ग अब केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि “राजनीतिक प्रभावशाली तबका” बन चुका है। हर गांव में इनका संगठन, बैठकें और नेटवर्क है, यानी यह वर्ग चुनाव प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट तक में रोल निभा सकता है।
एनडीए बनाम महागठबंधन – दीदी की डगर कौन जीतेगा?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि “जीविका योजना नीतीश कुमार की सबसे सफल सामाजिक इंजीनियरिंग है। लेकिन अगर तेजस्वी यादव इस वर्ग को अपने वादों से लुभा लेते हैं, तो यह खेल पलट भी सकता है।” दरअसल, जीविका दीदी वोटर केवल आर्थिक लाभ के आधार पर फैसला नहीं करतीं, बल्कि सम्मान, पहचान और भरोसे पर करती हैं। नीतीश का फायदा “स्थिरता और ट्रस्ट” से है, तो तेजस्वी युवाओं और परिवर्तन के नाम पर पकड़ बना रहे हैं।
