बिहार चुनाव 2025 में 62% उम्मीदवार स्नातक या उच्च शिक्षित हैं, जिनमें D-Litt, PhD, इंजीनियर और डॉक्टर शामिल हैं। वहीं, 8% नॉन-मैट्रिक प्रत्याशी भी मजबूत जनाधार के साथ मैदान में हैं। यह राजनीति में शिक्षा और जनाधार के संतुलन को दर्शाता है।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में इस बार उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता भी उतनी ही चर्चा में है जितना कि उनकी सियासी पकड़। चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों के आंकड़े बताते हैं कि इस बार कुल उम्मीदवारों में लगभग 62% स्नातक या उससे ऊपर की डिग्रीधारी हैं, जो बिहार की राजनीति में शिक्षा के महत्व को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
एनडीए और महागठबंधन दोनों ने इस बार उच्च शिक्षित चेहरों पर भरोसा जताया है, जिसमें इंजीनियरिंग, एमबीबीएस, एमबीए, पीएचडी और डी-लिट जैसी डिग्रियां शामिल हैं। इस बार कुल तीन प्रत्याशी डी-लिट डिग्रीधारी हैं, जिनमें उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (तारापुर, भाजपा), मुरारी मोहन झा (केवटी, भाजपा) और रामानुज कुमार (सोनपुर, राजद) शामिल हैं।
वहीं, पीएचडी डिग्रीधारी उम्मीदवारों की संख्या 12 है। इनमें प्रमुख हैं डॉ. संजीव चौरसिया (भाजपा), डॉ. रामानंद यादव (राजद), डॉ. इंद्रदीप चंद्रवंशी (कांग्रेस), शतानंद (साहेबपुर कमाल, राजद) और चंदन कुमार (खगड़िया, कांग्रेस)। ये नेता सिर्फ राजनीतिक कौशल ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और शासकीय नीतियों की समझ रखते हैं।
इंजीनियरिंग, एलएलबी और पेशेवर डिग्रियों का दबदबा
इस बार चुनावी मैदान में 12 उम्मीदवार इंजीनियरिंग डिग्रीधारी हैं। इनमें प्रमुख नाम हैं विजय कुमार सिन्हा (लखीसराय, भाजपा), रूहेल रंजन (इस्लामपुर, जदयू), अजीत कुमार (कांटी, जदयू), संजीव सिंह (वैशाली, कांग्रेस) और रवींद्र कुमार सिंह (महनार, राजद)। इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि वाले इन नेताओं का दावा है कि उनका तर्क और समस्या सुलझाने का कौशल उन्हें नीतिगत फैसले लेने में मदद करेगा।
इसके अलावा 17 उम्मीदवार एलएलबी, 5 एमबीबीएस और 3 एमबीए डिग्रीधारी हैं। इनमें भाजपा के डॉ. सुनील कुमार (बिहार शरीफ), राजद की डॉ. करिश्मा (परसा) और जदयू के कोमल सिंह (गायघाट) जैसे नाम शामिल हैं। ये नेता कानून, स्वास्थ्य और प्रबंधन के क्षेत्रों में अनुभव रखते हैं और अपने पेशेवर ज्ञान का इस्तेमाल राजनीति में करने का दावा कर रहे हैं।
जनाधार बनाम शिक्षा: 8% नॉन-मैट्रिक भी मजबूत
जहां पढ़े-लिखे उम्मीदवारों का दबदबा बढ़ा है, वहीं करीब 8% उम्मीदवार नॉन-मैट्रिक हैं। इनमें सातवीं या आठवीं तक पढ़े-लिखे और कुछ केवल साक्षर उम्मीदवार शामिल हैं। हालांकि उनकी शिक्षा सीमित है, लेकिन उनका जनाधार और क्षेत्रीय पकड़ उन्हें मुकाबले में प्रभावशाली बनाती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की राजनीति में शिक्षा और जनाधार दोनों का संतुलन जरूरी है। पढ़ाई से नेता नीति और प्रशासन समझ सकते हैं, लेकिन वोट जीतने के लिए जनसंवाद और स्थानीय पहचान भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
स्नातक से पोस्ट ग्रेजुएट तक
- पोस्ट ग्रेजुएट - 28 उम्मीदवार
- स्नातक - 66 उम्मीदवार
- इंटरमीडिएट - 47 उम्मीदवार
- मैट्रिक - 24 उम्मीदवार
- नॉन-मैट्रिक - लगभग 8% उम्मीदवार
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि बिहार की राजनीति में शिक्षा का स्तर पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा है। पार्टियों ने अब केवल जातीय और क्षेत्रीय समीकरण पर भरोसा नहीं किया, बल्कि उच्च शिक्षा वाले उम्मीदवारों को टिकट देकर नीतिगत और प्रशासनिक क्षमता भी जोड़ना चाहा है।
