US-China Trade War: अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के चलते दोनों आर्थिक महाशक्तियां आपस में टकरा रहीं हैं। इसका असर सिर्फ इन दोनों देशों पर नहीं होगा। भारत समेत पूरी दुनिया पर इसका प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका और चीन के ट्रेड वार से अंतरराष्ट्रीय बाजारों के अस्त-व्यस्त होने का खतरा है।
अमेरिका और चीन द्वारा एक दूसरे पर भारी टैरिफ लगाने से दोनों के बीच होने वाला 450 बिलियन डॉलर (38.78 लाख करोड़ रुपए) से अधिक का व्यापार प्रभावित हुआ है। इस व्यापारिक जंग में भारत भी फंसा है। भारत से अरबों डॉलर से अधिक मूल्य के स्टील और एल्युमीनियम निर्यात प्रभावित हुए हैं। अमेरिका ने 2019 में भारत की GSP (Generalised System of Preferences) स्थिति रद्द कर दिया था। इससे रुपया कमजोर हुआ और महंगाई बढ़ी। GDP बढ़ने की गति 2017-18 में 8.3% से घटकर 2019-20 में 4.2% हो गई। अब एक बार फिर ट्रेड वार चल रहा है। जानकारों को डर है कि इससे ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है।
अमेरिका और चीन के बीच चल रही टैरिफ की जंग
अपने नए फैसले में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने चीन से आयात होने वाले सभी सामानों पर 125% टैरिफ लगाया है। चीन भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। उसने अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर 84% टैरिफ लगाया है। इससे अमेरिकी ऊर्जा से लेकर कृषि और भारी मशीनरी तक सब तरह के निर्यात प्रभावित हुए हैं।
ट्रंप इसे "आवश्यक रीसेट" कह रहे हैं। उनके प्रशासन ने न केवल चीन बल्कि वियतनाम और कंबोडिया जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर भी निशाना साधा है। उन पर चीनी सामानों को अमेरिका में लाने के लिए पिछले दरवाजे के रूप में काम करने का आरोप लगाया है।
दूसरी ओर ट्रंप ने भारत सहित दर्जनों देशों के लिए पारस्परिक टैरिफ पर 90 दिनों की रोक लगाई है। इससे माना जा रहा है कि अमेरिका चीन को अलग-थलग करने के लिए टैरिफ का इस्तेमाल कर रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका द्वारा 90 दिनों के लिए पारस्परिक टैरिफ रोकने से भारतीय निर्यातकों खास तौर पर झींगा निर्यातकों को राहत मिली है। भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर औपचारिक बातचीत शुरू करने वाले पहले देशों में से एक है।
भारत और अमेरिका 2025 की सर्दियों तक व्यापार समझौते के पहले चरण को पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं। इसका लक्ष्य 2030 तक 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर (43.09 लाख करोड़ रुपए) का द्विपक्षीय व्यापार है। इस समय अमेरिका भारत से आयात होने वाले सामानों पर 10%
पारस्परिक टैरिफ लगा रहा है। यह चीनी आयात पर लागू 125% टैरिफ से बहुत कम है। यह अंतर एक ऐसा अवसर पैदा करता है, जिसका फायदा भारत उठा सकता है।
भारत पर क्या होगा ट्रेड वार का असर?
भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर चीनी कंपोनेंट्स पर बहुत अधिक निर्भर है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में। बैटरी और सेमीकंडक्टर से लेकर डिस्प्ले पैनल तक सब कुछ भारत को आयात करना पड़ता है। ट्रेड वार के चलते आने वाले हफ्तों में स्मार्टफोन, लैपटॉप और उपकरण महंगे हो सकते हैं।
भारत दवा निर्माण के मामले में ग्लोबल लीडर है, लेकिन दवा बनाने में लगने वाले सामान के लिए चीन पर निर्भर है। करीब 70% सक्रिय दवा सामग्री चीन से आयात होती है। इसकी सप्लाई में कोई बाधा आती है तो दवा तैयार करने का खर्च बढ़ेगा। इसका असर ग्लोबल जेनेरिक दवा बाजारों पर पड़ सकता है।
भारत के वाहन निर्माता इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने में पहले से अधिक इनपुट लागत से जूझ रहे हैं। ट्रेड वार से उनकी सप्लाई चेन बाधित हो सकती हैं। ईवी बैटरी से लेकर विशेष धातुओं तक कई अहम पुर्जे चीन से आते हैं।
स्टील के मामले में अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में सख्ती के चलते चीनी उत्पादक भारत जैसे वैकल्पिक बाजारों में बचा हुआ सामान बेचने पर विचार कर सकते हैं। इससे स्थानीय कीमतों में गिरावट आ सकती है। मार्जिन दबाव से पहले से ही जूझ रहे भारतीय उत्पादकों को नुकसान हो सकता है।
चीन और अमेरिका के ट्रेड वार से भारत के लिए सिर्फ बुरी खबरें नहीं हैं। भारत के IT और टेक्नोलॉजी सर्विस इंडस्ट्री को लाभ हो सकता है। चीन से आयात होने वाले सामानों पर बढ़ती लागत देखते हुए अमेरिकी कंपनियां भारत में आउटसोर्सिंग बढ़ा सकती हैं।
कृषि क्षेत्र में भी संभावनाएं हैं। अगर चीन अमेरिकी कृषि आयात कम करता है तो भारत को इसमें कदम रखने का मौका मिल सकता है, खासकर सोयाबीन या कपास जैसे बाजारों में।
चीन और अमेरिका के टैरिफ वार से दुनिया पर होगा क्या असर?
अमेरिका चीन को सेमीकंडक्टर निर्यात पर प्रतिबंध कड़ा कर रहा है। वह हाई परफॉर्मेंस वाले चिप्स चीन को देने से रोक रहा है। इन चिप्स का इस्तेमाल एआई सिस्टम और एडवांस कंप्यूटिंग के लिए होता है। बदले में चीन रेयर अर्थ मैटर्स जैसे-गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात में कटौती करने की धमकी दे रहा है। इनका इस्तेमाल EV और स्मार्टफोन से लेकर मिसाइल गाइडेंस सिस्टम तैयार करने में होता है। रेयर अर्थ मैटर्स के क्षेत्र में चीन दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है।
भारत अपनी खुद की चिप निर्माण क्षमता बनाने की कोशिश कर रहा है। रेयर अर्थ मैटर्स की कमी होने या सेमीकंडक्टर कंपोनेंट्स मिलने में देरी से भारत को नुकसान होगा। चीन अगर रेयर अर्थ मैटर्स का निर्यात कम करता है तो पूरी दुनिया पर इसका असर होगा।