Kissa UP Ka: गैंगवार से लेकर जनता के दिलों तक, जानिए पूर्वांचल के बाबूजी की कहानी

1980 के दशक में पूर्वांचल के गोरखपुर से माफिया की शुरुआत होती है। हम बात कर रहे हैं हरिशंकर तिवारी Hari Shankar Tiwari की। ये वही हरिशंकर तिवारी हैं जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण के लिए जाना जाता है। यूपी की राजनीति में हरिशंकर तिवारी उस वक्त चर्चा में आ जाते हैं जब 1985 में वे गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते हैं और जेल की चारदीवारी के अंदर रहते हुए चुनाव जीत जाते हैं। इसके बाद हरिशंकर तिवारी के लिए राजनीति का दरवाजा खुल जाता है। बता दें कि लोग हरिशंकर तिवारी को प्यार से बाबूजी कहकर बुलाते हैं।

Asianet News Hindi | Updated : Feb 24 2022, 04:30 PM
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लखनऊ: 


पूर्वांचल में गैंगवार Gangwar in Poorvanchal शब्द का मतलब काफी बड़ा है, जो पूरे पूर्वांचल में माफियाराज और माफियाओं की राजनीति को परिभाषित कर देता है। पूर्वांचल की जमीन को जानने वाले यह भी जानते हैं कि पूर्वांचल ने न जाने कितने ही चर्चित चेहरों को जन्म दिया है। वाराणसी और गाजीपुर पूर्वांचल के माफियाओं का केंद्र रही हैं। अधिकतर गैंगवार और माफियाओं की शुरुआत यहीं से हुई। लेकिन इससे पहले की एक कहानी है, जो गोरखपुर की है। इस कहानी के किरदार के कारण आज पूर्वांचल के दो शहरों वाराणसी और गाजीपुर में ऐसी गैंगवार की शुरुआत हुई, जो अबतक नहीं थमी है। देखिए पूर्वांचल के बाबू जी की कहानी।

1980 के दशक में पूर्वांचल के गोरखपुर से माफिया की शुरुआत होती है। हम बात कर रहे हैं हरिशंकर तिवारी Hari Shankar Tiwari की। ये वही हरिशंकर तिवारी हैं जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण के लिए जाना जाता है। यूपी की राजनीति में हरिशंकर तिवारी उस वक्त चर्चा में आ जाते हैं जब 1985 में वे गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते हैं और जेल की चारदीवारी के अंदर रहते हुए चुनाव जीत जाते हैं। इसके बाद हरिशंकर तिवारी के लिए राजनीति का दरवाजा खुल जाता है। बता दें कि लोग हरिशंकर तिवारी को प्यार से बाबूजी कहकर बुलाते हैं।

इंदिरा गांधी के खिलाफ जय प्रकाश नारायण मोर्चा खोले हुए थे। इस दौरान छात्र जेपी के साथ और इंदिरा के खिलाफ विरोध कर रहे थे। लेकिन पूर्वांचल में अलग ही कहानी चल रही थी। पूर्वांचल में माफिया, शक्ति और सत्ता की लड़ाई शुरू हो चुकी है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र यहां बंदूकों की नाल साफ कर रहे थे। यही वह पल है जब हरिशंकर तिवारी की राजनीति में एंट्री होती है। लंबे समय से मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस क्षेत्र के युवाओं की दिलचस्पी कट्टों और खतरनाक हथियारों में आ गई। जेल में रहते हुए हरिशंकर तिवारी चुनाव जीते और साल 1997 से लेकर 2007 तक वे लगातार यूपी में मंत्री बने रहे। वह 22 सालों तक चिल्लूपार सीट से विधायक रहे। तिवारी को केवल 2 बार हार मिली। वह पहली बार साल 2007 में और दूसरी बार साल 2012 में चुनाव हारे। भाजपा, सपा, बसपा सभी सरकारों में वे कई मंत्रालयों को संभालते रहे।

वैसे तो सीधे तौर पर हरिशंकर तिवारी पर लगे आरोप अभी तक साबित नहीं हुए हैं। लेकिन कहते हैं कि उन्होंने ही क्षेत्र में माफिया राज की शुरुआत की। कॉलेज के दौरान से ही छात्रों पर नजर रखी जाने लगी। जो छात्र जितना अव्वल और तेज तर्रार होते उन्हें उतनी ही जल्दी माफियाओं का शरण मिल जाता था। इन्हीं छात्रों में एक था श्रीप्रकाश शुक्ला जिसे पूरा उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर भारत जानता है।

हरिशंकर तिवारी के मुताबिक वे राजनीति में इसलिए आए क्योंकि उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने उन पर झूठे केस लगाकर जेल भेज दिया। हरिशंकर तिवारी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह पहले प्रदेश कांग्रेस के सदस्य थे। इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन चुनाव कभी नहीं लड़ा। तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा किए गए उत्पीड़न के कारण उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया।

पूर्वांचल में 1980 के दशक में विकास कार्यों हेतु सरकारी परियोजनाओं का आगमन हुआ। लेकिन सरकारी परियोजनों पर भी वर्चस्व हमेशा बाहुबलियों का रहा है। ऐसे में हरिशंकर तिवारी के पाले में पूरे पूर्वांचल का ठेका जाने लगा। पूर्वांचल में एक समय ऐसा भी था, जब सभी ठेके खुद ब खुद तिवारी को मिलने लगे क्योंकि उनके खिलाफ खड़ा होने के लिए कोई नहीं था। ऐसे में पूर्वांचल के रेलवे, कोयले सप्लाई, खनन, शराब इत्यादि अन्य तरह के सभी ठेकों पर हरिशंकर तिवारी और उनके लोगों का कब्जा रहा।अगर पूर्वांचल और बिहार के कुछ हिस्सों को देखे तो ऐसा अमूमन पाया जाता है कि जो शख्स किसी के लिए माफिया, बाहुबली या दंगाई होता है, वही किसी और के लिए रॉबिनहुड और भगवान भी होता है। पूर्वांचल में ऐसा हर बाहुबली, माफिया के साथ है। ऐसा ही कुछ हरिशंकर तिवारी के लिए भी कहा जा सकता है। क्योंकि इतने आरोप के बावजूद चिल्लूपार की जनता उन्हें बारबार जिताती रही और विधानसभा भेजती रही

साल 2012 में मिली हार के बाद से हरिशंकर तिवारी ने चुनाव नहीं लड़ा। उनकी आयु भी काफी अधिक हो चुकी है। वर्तमान में उनकी उम्र 84 वर्ष हो चुकी है। लेकिन आज भी चिल्लूपार में उनका प्रभाव है। वे अपने क्षेत्र के लोगों के यहां शादी ब्याह में दिख जाते हैं। साल 2017 से बसपा के टिकट पर उनके बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से विधायक हैं। हरिशंकर तिवारी के लिए कहा जाता है कि यूपी और पूर्वांचल की राजनीति में अगर आपको दिलचस्पी है तो आप हरिशंकर तिवारी से प्यार या नफरत कर सकते हैं, उन्हें अपराधी या रॉबिनहुड मान सकते हैं लेकिन उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। बता दें कि हरिशंकर तिवारी फिलहाल अपने गोरखपुर के जटाशंकर मुहल्ले में किलेनुमे घर में रहते हैं। इस घर को तिवारी हाता के नाम से पूरे गोरखपुर व पूर्वांचल में जाना जाता है।

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