Explainer: माया से क्यों दूर जा रहे दलित, समझिए BJP ने कैसे पलटी बाजी
सतीश चंद्र मिश्रा के माध्यम से माया ने ब्राह्मणों को अपने साथ मिलाने की कोशिश की तो अब पहली लिस्ट के बाद ऐसा लग रहा है कि माया मुस्लिम वोटबैंक पर डोरे डाल रही हैं। बीते शनिवार को उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान वाली विधानसभा सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी हुई थी।
लखनऊ: मायावती का कोर वोट बैंक बसपा से दूर होता जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, 'मायावती की बहुजन समाज पार्टी का कोर वोट बैंक वह था जो मुख्यधारा से थोड़ी दूर था। बसपा की पूरी राजनीति 2012 से पहले तक इसी वोटबैंक के इर्दगिर्द घूम रही थी। लेकिन 2014 के बाद से यह वोट बैंक उनके पास से फिसलने लगा। बीजेपी की मोदी सरकार की नीतियों ने सीधे तौर पर इस तबके के लोगों को छूने की कोशिश की। प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन योजना, मुद्रा योजना, उज्जवला योजना, अटल पेंशन योजना, सुकन्या समृद्धि योजना जैसी सैकड़ों योजनाओं ने ऐसे लोगों को मुख्यधारा में फिर से लाने की कोशिश की। जिसकी वजह से उस वोटबैंक का बड़ा हिस्सा माया से छिटककर बीजेपी की तरफ चला गया।'
मायावती को हो गया था पूर्वाभास
माया को अपने वोटबैंक के खिसकने का अहसास 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों से ही हो गया था। इसके बाद 2017 और फिर 2019 के चुनावी नतीजों ने माया के मन में अपने कोर वोटबैंक को लेकर बना भ्रम भी दूर कर दिया। अब माया को एक नए वोटबैंक की जरूरत थी। बीजेपी जहां खुले तौर पर सबके साथ और सबके विकास के साथ हिंदुत्व का कार्ड खेल रही थी, वहीं सपा और कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर जा रही थीं। ऐसे में माया को सबसे सेफ मुस्लिम वोटर्स को साधना लगा।' लेकिन मुस्लिम वोट को माया नहीं साध पाएंगी और 2022 के चुनावी नतीजे इस बात को प्रमाणित भी कर देंगे।