Uttar Pradesh Power Tariff 2025: यूपी में बिजली दर बढ़ाने के प्रस्ताव का उपभोक्ता परिषद, मेट्रो कॉरपोरेशन समेत कई संगठनों ने किया विरोध। नियामक आयोग उपभोक्ताओं के पक्ष में, बढ़ोतरी की संभावना अब कम नजर आ रही है।
UP Electricity Rate Hike: उत्तर प्रदेश में बिजली दरों को लेकर लंबे समय से जारी असमंजस पर शुक्रवार को बड़ी सुनवाई हुई। जहां एक ओर पावर कॉर्पोरेशन बिजली दरों में 45 फीसदी तक की बढ़ोतरी का प्रस्ताव लेकर पहुंचा, वहीं दूसरी ओर उपभोक्ता संगठनों से लेकर सरकारी और निजी निकायों तक सभी ने इस प्रस्ताव का तीखा विरोध किया। सुनवाई के बाद माहौल देखकर यही संकेत मिला कि बिजली दरों में तत्काल बढ़ोतरी की संभावना अब बेहद कम हो गई है।
बिजली दरें क्यों बढ़ाना चाहता है पावर कॉर्पोरेशन?
पावर कॉर्पोरेशन का तर्क है कि बीते पांच वर्षों से बिजली दरों में कोई वृद्धि नहीं हुई है, जबकि लागत में भारी इजाफा हुआ है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने, नई तकनीक लाने और सुधार कार्यों के लिए निगम के पास संसाधनों की कमी है। ऐसे में या तो सरकार अनुदान दे या फिर दरें बढ़ाई जाएं। निगम ने 19 हजार करोड़ रुपये के घाटे और 33122 करोड़ रुपये के बकाये को दर वृद्धि का आधार बताया।
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स्मार्ट प्रीपेड मीटर का खर्च उपभोक्ताओं पर क्यों?
इस प्रस्ताव का सबसे मुखर विरोध विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने किया। उन्होंने कहा कि नोएडा पावर कंपनी का स्मार्ट प्रीपेड मीटर प्रयोग पहले ही असफल हो चुका है। यदि इसकी लागत उपभोक्ताओं पर डाली जाती है, तो यह जनता के साथ अन्याय होगा। वर्मा ने यह भी सुझाव दिया कि उपभोक्ताओं का जो बकाया निगमों पर है, उसे दरों में समायोजित कर धीरे-धीरे लौटाया जाए।
क्या मेट्रो कॉरपोरेशन पर भी बढ़ेगी बिजली की मार?
बैठक में मेट्रो कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक सुशील कुमार ने साफ कहा कि यदि बिजली दरें बढ़ाई गईं तो मेट्रो सेवाएं चलाना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि मेट्रो को किसी भी प्रकार की सब्सिडी नहीं मिलती, ऐसे में अतिरिक्त बिजली लागत सीधे संचालन को प्रभावित करेगी।
इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने भी प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि बिजली दर बढ़ने से औद्योगिक इकाइयों पर अतिरिक्त भार पड़ेगा और उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होगी। इससे यूपी में औद्योगिक निवेश भी प्रभावित हो सकता है।
लिखित प्रस्ताव में क्या मांग रखी गई?
बैठक के दौरान तीन सदस्यों-अवधेश कुमार वर्मा, दीपा और डॉ भारत राज सिंह—ने लिखित प्रस्ताव देकर 33122 करोड़ रुपये के उपभोक्ता बकाये के एवज में बिजली दरों में 45 फीसदी तक की कटौती करने की मांग की। साथ ही आरडीएसएस योजना के तहत केंद्र द्वारा दिए जा रहे 44094 करोड़ रुपये के निवेश का बेहतर इस्तेमाल करने और पूर्वांचल-दक्षिणांचल का निजीकरण रोकने की मांग की गई।
संकल्प पत्र के खिलाफ है नई दरों का प्रस्ताव?
उपभोक्ता परिषद ने यह भी आरोप लगाया कि घरेलू उपभोक्ताओं की BPL श्रेणी के लिए 3 से 4 रुपये प्रति यूनिट की दर प्रस्तावित की गई है, जो भारतीय जनता पार्टी के चुनावी संकल्प पत्र के वादों के विपरीत है।
अब सबकी नजरें विद्युत नियामक आयोग के अंतिम निर्णय पर टिकी हैं। हालांकि बैठक के माहौल और समिति की टिप्पणियों से संकेत मिला है कि आयोग इस बार उपभोक्ता हित में फैसला ले सकता है। दरों में कोई बड़ी बढ़ोतरी फिलहाल टल सकती है। लेकिन यह साफ है कि ऊर्जा क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार और कॉर्पोरेशन को नई रणनीति पर काम करना होगा।
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