क्या छुपा है लोहंदा गांव में? आखिर क्यों चंद्रशेखर आज़ाद वहां पहुंचना चाहते थे? 8 साल की बच्ची से कथित दुष्कर्म, फिर आरोपी पिता की कोतवाली में ज़हरीली मौत… अब सियासी घमासान! समर्थकों का जमावड़ा, पुलिस ने घेरा गांव, माहौल गर्म!
Bhim Army Protest 2025: उत्तर प्रदेश के लोहंदा गांव (कोतवाली करारी, ज़िला कौशांबी) में एक मासूम बच्ची से कथित दुष्कर्म और उसके बाद हुए आत्महत्या कांड ने सिर्फ संवेदना ही नहीं, बल्कि सियासी तूफान भी खड़ा कर दिया है। आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद रावण जब रविवार को पीड़िता के परिजनों से मिलने लोहंदा गांव जाना चाह रहे थे, तो प्रशासन ने उन्हें रोक दिया। लेकिन इस सवाल ने पूरे यूपी की राजनीति में हलचल पैदा कर दी — "चंद्रशेखर आखिर लोहंदा क्यों जाना चाहते थे?"
क्या है लोहंदा गांव का मामला?
27 मई 2024 को लोहंदा गांव में 8 वर्षीय बच्ची से कथित दुष्कर्म का मामला सामने आया। आरोपी पड़ोसी युवक के खिलाफ पॉक्सो और बलात्कार की धाराओं में केस दर्ज हुआ और उसे जेल भेजा गया। 4 जून को आरोपी के पिता रामबाबू तिवारी ने कोतवाली के भीतर ही ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली, उसने बेटे को निर्दोष बताया था। इसके बाद पुलिस ने बच्ची के पिता, ग्राम प्रधान व अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। ग्राम प्रधान के भाई और बच्ची के पिता को जेल भेजा गया। रामबाबू की मौत के विरोध में ग्रामीणों ने हाईवे पर शव रखकर प्रदर्शन किया, जिसमें लाठीचार्ज, केस और तनाव बढ़ता गया।
चंद्रशेखर क्यों कूदे मैदान में?
चंद्रशेखर आज़ाद दलित उत्पीड़न और मानवाधिकार से जुड़े मामलों में मुखर रहते हैं। लोहंदा का यह मामला न केवल दलित पीड़ित परिवार, बल्कि आरोपी पक्ष — जो खुद को निर्दोष बता रहा था — दोनों ओर सामाजिक न्याय और प्रशासनिक कार्रवाई की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।
चंद्रशेखर का गांव जाने का क्या था मकसद?
पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग के साथ-साथ, आरोपी के पिता की आत्महत्या पर सवाल उठाने, और इस बहाने अपने दल को सामाजिक न्याय की राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने की रणनीति भी माना जा रहा है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि 2027 यूपी विधानसभा चुनाव से पहले चंद्रशेखर इस तरह के जमीनी मुद्दों को हाइलाइट कर दलित वोट बैंक को पुनः सक्रिय करना चाहते हैं।
प्रशासन ने क्यों लगाया रोक?
जिला प्रशासन का मानना है कि लोहंदा गांव पहले से ही दो पक्षों के बीच तनाव से जूझ रहा है। वहां किसी बड़े नेता का पहुंचना कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती हो सकता था। इसलिए प्रयागराज एयरपोर्ट से ही चंद्रशेखर को रोका गया और उन्हें सर्किट हाउस में रखा गया। बाद में DM-SP ने पीड़िता के परिवार से फोन पर बात कराई।
सैकड़ों कार्यकर्ता हाईवे पर डटे, कई हिरासत में
चंद्रशेखर के रोके जाने की खबर फैलते ही कौशांबी, फतेहपुर, प्रयागराज, बांदा और रायबरेली से ASP के सैकड़ों कार्यकर्ता लोहंदा के बाहर और हाईवे पर जमा हो गए। पुलिस ने 13 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया और शाम को रिहा किया। पूरे गांव को आंशिक कर्फ्यू जैसे हालात में सील कर दिया गया।
पॉकेटमारी ने बढ़ाई सिरदर्दी
भीड़ का फायदा उठाते हुए जेबकतरों ने कई लोगों के पैसे, एटीएम कार्ड और दस्तावेज उड़ा दिए। पीड़ितों ने पुलिस को तहरीर दी है।
लोहंदा का सच केवल एक मामला नहीं, एक सवाल है व्यवस्था पर!
चंद्रशेखर आज़ाद का लोहंदा जाना केवल राजनीतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक सांकेतिक संघर्ष है — सत्ता, प्रशासन और दलित समाज के बीच भरोसे की लड़ाई का। लोहंदा गांव अब एक जमीनी हकीकत और राजनीतिक महत्वाकांक्षा की टकराहट का केंद्र बन गया है।