भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह 5 अक्टूबर को भाजपा में फिर से शामिल हो रहे हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में निर्दलीय लड़ने के बाद यह उनकी "घर वापसी" है। इस कदम से बिहार की जातीय राजनीति, खासकर शाहाबाद क्षेत्र में, NDA को मजबूती मिलने की उम्मीद है।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा से पहले बड़ा धमाका होने जा रहा है। भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और गायक पवन सिंह एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता लेने जा रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पवन सिंह 5 अक्टूबर को औपचारिक तौर पर पार्टी में शामिल होंगे। इससे पहले मंगलवार को पवन सिंह ने पहले रलोमो उपेन्द्र कुशवाहा फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई। जिसके बाद पवन सिंह के बीजेपी में शामिल होने की बात तय मानी जा रही है। पवन सिंह की यह "घर वापसी" केवल एक अभिनेता का राजनीतिक मंच पर आना नहीं है, बल्कि यह कदम पूरे बिहार की जातीय और क्षेत्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकता है।
क्यों अहम है पवन सिंह का शामिल होना?
पवन सिंह भोजपुरी फिल्मों और गानों की दुनिया में एक बड़ा नाम हैं। उत्तर बिहार से लेकर शाहाबाद और मगध तक उनकी लोकप्रियता का कोई मुकाबला नहीं। उनके गीत और व्यक्तित्व ने उन्हें न सिर्फ युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी उनकी जबरदस्त पकड़ है। इसके साथ ही भाजपा जातीय समीकरण को भी साधना चाह रही है, क्योंकि पवन सिंह की राजपूत वोटरों में अच्छी पकड़ मानी जाति है। ऐसे में भाजपा उन्हें चुनावी मैदान में उतारकर सीधे वोटरों की भावनाओं और क्षेत्रीय पहचान को साधना चाहती है।
2024 लोकसभा चुनाव में पवन सिंह का असर
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2024 में पवन सिंह ने भाजपा से नाराज होकर काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उनकी मौजूदगी ने उपेंद्र कुशवाहा की हार सुनिश्चित कर दी थी। माना जाता है कि पवन सिंह के वोटों के बंटवारे से महागठबंधन को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हुआ। यही वजह थी कि चुनाव बाद भाजपा और कुशवाहा के बीच दूरी बढ़ी। लेकिन अब पवन सिंह के भाजपा में शामिल होने से न केवल एनडीए के भीतर मतभेद दूर होंगे, बल्कि शाहाबाद की राजनीति में भाजपा की पकड़ भी और मजबूत होगी।
चिराग पासवान का बयान
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने पवन सिंह की भाजपा में घर वापसी पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “वह पहले से ही गठबंधन का हिस्सा थे। निस्संदेह, चुनाव के दौरान उनके निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ने से गठबंधन के भीतर चिंता बढ़ गई थी। इससे सबसे ज्यादा नुकसान उपेंद्र कुशवाहा को हुआ था। लेकिन अब जब वे मिल गए हैं, तो कोई भी मतभेद दूर हो गया होगा। अगर पवन शामिल होते हैं, तो गठबंधन को और फायदा होगा।”
विधानसभा चुनाव में बड़ा दांव
सियासी गलियारों में चर्चा है कि भाजपा पवन सिंह को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आरा सीट से टिकट दे सकती है। आरा सीट न केवल भोजपुर जिले की प्रतिष्ठित सीट है, बल्कि यहां का नतीजा पूरे शाहाबाद इलाके की राजनीति को प्रभावित करता है। पवन सिंह अगर आरा से उम्मीदवार बनते हैं तो उनकी लोकप्रियता का असर बक्सर, रोहतास और कैमूर तक फैल सकता है।
जातीय समीकरण और पवन सिंह का वोट बैंक
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। पवन सिंह राजपूत समाज से आते हैं, जो शाहाबाद और आसपास के जिलों में निर्णायक प्रभाव रखते हैं। भाजपा अगर उन्हें टिकट देती है, तो राजपूत समाज का बड़ा हिस्सा सीधे एनडीए खेमे में आ सकता है। साथ ही भोजपुरी गायक होने की वजह से पवन सिंह को ओबीसी और पिछड़े वर्गों से भी अच्छा समर्थन मिल सकता है।
