Bihar 2025 election: Chhath & SIR impact? िबहार विधानसभा चुनाव 2025 में छठ महापर्व पर लौटते प्रवासी वोटर्स और SIR की नई वोटर सूची का असर क्या नीतीश-एनडीए के पक्ष में होगा या चुनाव में छिपा है कोई बड़ा उलटफेर?
Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक हैं और इस बार चुनाव का समय छठ महापर्व के तुरंत बाद, 6 और 11 नवंबर को तय किया गया है। यह समय बिहार की राजनीति के लिए हमेशा खास रहा है। पिछले रिकॉर्ड बताते हैं कि छठ के दौरान लौटते प्रवासी बिहारियों का वोटिंग पैटर्न चुनाव नतीजों पर सीधा असर डालता रहा है। साल 2005 से लेकर अब तक हर विधानसभा चुनाव में छठ महापर्व और त्योहारों के आसपास मतदान बढ़ा है, और इसका सबसे ज्यादा फायदा एनडीए और नीतीश कुमार को हुआ है।
SIR की वजह से जोड़े गए कितने नए मतदाता?
इस बार SIR (Special Summary Revision) के कारण वोटर लिस्ट में बड़े बदलाव हुए हैं। कुल मिलाकर 21 लाख नए मतदाता जोड़े गए हैं, जबकि कुछ बाहरी मतदाता सूची से कट भी गए हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या छठ महापर्व और SIR मिलकर इस बार चुनावी समीकरण बदलेंगे या एनडीए का पलड़ा फिर भारी होगा?
छठ महापर्व और बिहार चुनाव: क्यों बढ़ता है वोट प्रतिशत?
छठ महापर्व पर लाखों प्रवासी बिहार अपने घर लौटते हैं। यही समय बिहार में मतदाता सक्रियता का पीक होता है। लोग त्योहार की तैयारियों में व्यस्त होते हुए भी मतदान जरूर करते हैं। पिछले चुनावों में यह साफ देखा गया है कि प्रवासी वोटर्स ज्यादातर एनडीए समर्थक रहे हैं। उदाहरण के लिए, अक्टूबर-नवंबर 2005 के चुनाव में छठ के समय वोट प्रतिशत करीब 45% था, जो 2010 में बढ़कर 52% हो गया। सवाल उठता है-क्या इस बार SIR और नए वोटर जोड़ने की प्रक्रिया से वोट प्रतिशत में और वृद्धि होगी, और क्या इसका फायदा भी वही दल उठाएगा जिसने हमेशा इन प्रवासी वोटर्स का समर्थन पाया है?
SIR के बाद बिहार चुनाव: नया वोटर डेटा क्या दिखाएगा?
SIR यानी Special Summary Revision इस बार चुनावी चर्चा का बड़ा मुद्दा बन चुका है। इसके तहत मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर संशोधन किया गया है। विपक्षी दलों ने इसे वोट चोरी का मामला बताते हुए मुद्दा बनाया है, जबकि सत्तारूढ़ एनडीए इसे निष्पक्ष प्रक्रिया मान रहा है। प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकारों का कहना है कि प्रवासी वोटर्स के रुझान इस बार पहले की तरह एनडीए के पक्ष में नहीं हो सकते। सवाल यही है: क्या SIR के बाद भी बाहर के वोटर्स जेडीयू-बीजेपी के लिए मददगार साबित होंगे या चुनाव में नई सस्पेंस फिज़ा बनेगी?
क्या प्रवासी वोटर्स फिर से एनडीए के लिए खेलेंगे फायदा?
अक्टूबर-नवंबर 2005 में छठ महापर्व के दौरान हुए मतदान में प्रवासी वोटर्स का असर सीधे तौर पर एनडीए को मिला। उस साल जेडीयू को 88 सीटें और बीजेपी को 55 सीटें मिलीं। आरजेडी का असर घटकर 54 सीटों तक रह गया। इसके बाद 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में भी छठ महापर्व के समय मतदान बढ़ा और एनडीए को फायदा हुआ। यहां सवाल यह है: क्या 2025 में भी प्रवासी बिहारियों का वोटिंग पैटर्न वही रहेगा या SIR और नए मतदाता समीकरण चुनाव का पूरा नक्शा बदल देंगे?
त्योहार और लोकतंत्र का संगम
बिहार में चुनाव सिर्फ वोटिंग का मामला नहीं है, बल्कि त्योहार और राजनीति का संगम है। छठ महापर्व के चार दिनों के दौरान लोग न केवल अपने परिवार और परंपराओं में व्यस्त रहते हैं, बल्कि यह समय चुनावी प्रचार और रणनीति के लिए भी अहम होता है। छठ महापर्व और दिवाली के बीच आने वाले चुनावी दिनों ने हमेशा भारी मतदान देखा है। साल 2020 में छठ के समय वोट शेयर बढ़कर 57% तक गया, जिससे एनडीए को 125 सीटें मिलीं। इस बार भी यही पैटर्न दोहराने की उम्मीद है, लेकिन SIR के बदलाव ने चुनावी समीकरण में अनिश्चितता पैदा कर दी है।
2025 चुनाव: किसे मिलेगा फायदा, कौन होगा पीछे?
- एनडीए (JDU+BJP): पिछले रिकॉर्ड के मुताबिक छठ महापर्व के दौरान उनका वोट शेयर बढ़ा है।
- महागठबंधन (RJD+Congress+Others): SIR और नए मतदाता आंकड़ों के आधार पर इस बार उनका पलड़ा मजबूत हो सकता है।
- प्रवासी वोटर्स: उनका रुझान और हिस्सा तय करेगा कि कौन फायदा उठाता है।
- इस बार सवाल यह है: क्या छठ महापर्व और SIR का संगम फिर से एनडीए को फायदा देगा या चुनाव में बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा?
क्या कहते हैं पिछले रिकाॅर्ड?
छठ महापर्व और SIR मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को रहस्यमयी और सस्पेंसफुल बना रहे हैं। पिछले रिकॉर्ड बताते हैं कि प्रवासी वोटर्स और त्योहार का असर एनडीए के पक्ष में रहा है। लेकिन इस बार नए मतदाता डेटा और SIR के बदलाव चुनाव का पूरा नक्शा बदल सकते हैं। जनता की नजरें इस बार चुनाव परिणाम पर पूरी तरह टिकी रहेंगी।
