सार
Vat Savitri Vrat Katha In Hindi: वट सावित्री व्रत का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। ये व्रत महिला प्रधान है। इस व्रत को करने घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पति की उम्र लंबी होती है, ऐसी मान्यता है।
Savitri Aour Satyawan ki Katha: ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन हर साल वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 27 मई, सोमवार को किया जाएगा। इस दिन कईं शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं व्रत करती हैं, उनके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पति की उम्र भी बढ़ती हैं। महाभारत आदि कई ग्रंथों में इस व्रत की कथा भी मिलती है। इस कथा को सुने बिना व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। आगे जानिए वट सावित्री व्रत की कथा…
ये है सावित्री और सत्यवान की कथा (Story of Savitri Satyawan)
महाभारत के अनुसार, ‘किसी समय भद्र देश पर राजा अश्वपति का शासन था, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने तपस्या करके देवी सावित्री को प्रसन्न किया, जिससे उन्हें एक कन्या पैदा हुआ। राजा ने देवी के नाम पर ही उस कन्या का नाम सावित्री रखा।
युवा होने पर एक दिन जब सावित्री किसी काम से जंगल में गई तो वहां उसने एक सुंदर युवक को देखा। उसे देखकर सावित्री उस पर मोहित हो गई। सावित्री ने ये बात अपने पिता राजा अश्वपति को बताई। राजा ने अपनी पुत्री की इच्छा के लिए उस युवक का पता करवाया।
राजा अश्वपति को पता चला कि वो युवक साल्व देश के राजा द्युमत्सेन का पुत्र सत्यवान है, लेकिन दुश्मनों द्वारा राज्य छिन लेने की वजह से वो इस समय जंगल में अपने माता-पिता के साथ रहता है। राजा अश्वपति को भी अपनी पुत्री सावित्री के लिए सत्यवान योग्य वर लगा।
एक दिन नारद मुनि ने आकर राजा अश्वपति को बताया कि एक वर्ष बाद सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। ये बात जानकर राजा अश्वपति ने सावित्री से कोई दूसरा वर पसंद करने को कहा, लेकिन सावित्री ने कहा कि वो मन ही मन में सत्यवान को अपना पति मान चुकी है।
सावित्री के हठ के आगे राजा अश्वपति की एक न चली और उन्होंने सावित्री का विवाह सत्यवान से करवा दिया। विवाह के बाद सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा करने लगी। जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया तो नारद मुनि ने इसके बारे में पहले ही सावित्री को बता दिया।
उस दिन सत्यवान के साथ सावित्री भी जंगल में गई। लकड़िया काटते-काटते अचानक सत्यवान की तबीयत खराब हो गई और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया। तभी यमराज ने वहां आकर सत्यवान के प्राण निकाल लिए और यमलोक ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने जब ये देखा तो सावित्री को लौट जाने को कहा।
सावित्री ने यमराज की बात नहीं मानी। सावित्री को वापस भेजने के लिए यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए। अंत में सावित्री की जिद से हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े, जिससे सत्यवान पुन: जीवित हो गया। इस प्रकार एक पतिव्रता स्त्री यमराज से अपने पति के प्राण ले आई।
जो भी महिलाएं वट सावित्री व्रत करती हैं, उन्हें ये कथा जरूर सुननी चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पति की उम्र भी बढ़ती है। जो महिलाएं किसी वजह से व्रत न कर पाएं वे भी इस कथा को सुनकर अपने जीवन में सुखी और समृद्ध बना सकती हैं।
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