सार

Kab Kare Vat Savitri Vrat: वट सावित्री हिंदुओं के प्रमुख व्रतों में से एक है। ये व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। धर्म ग्रंथों में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

 

Vat Savitri Vrat 2025 Date: हिंदू धर्म में परिवार की सुख-समृद्धि के लिए अनेक व्रत किए जाते हैं, वट सावित्री व्रत भी इनमें से एक है। ये व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। ये महिला प्रधान व्रत है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस बार ज्येष्ठ मास की अमावस्या 2 दिन है जिसके कारण इस व्रत की सही डेट को लेकर महिलाओं के मन में असमंजस है। जानें कब करें वट सावित्री व्रत, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त आदि डिटेल…

कब करें वट सावित्री व्रत? जानें सही डेट (Vat Savitri Vrat Ki Sahi Date)

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. द्विवेदी के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 26 मई, सोमवार की दोपहर 12:12 से शुरू होकर 27 मई, मंगलवार की सुबह 08:32 मिनिट तक रहेगी। वट सावित्री व्रत की पूजा दोपहर में की जाती है, इसलिए ये व्रत व्रत 26 मई, सोमवार को किया जाएगा।

वट सावित्री व्रत 2025 शुभ मुहूर्त (Vat Savitri Vart 2025 Shubh Muhurat)

- सुबह 09:04 से 10:44 तक
- सुबह 11:57 से दोपहर 12:50 तक (अभिजीत मुहूर्त )
- दोपहर 02:03 से 03:42 तक

वट सावित्री व्रत-पूजा विधि (Vat Savitri Vart Puja-Vrat Vidhi)

- 26 मई, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और मन में व्रत-पूजा का संकल्प लें। अगर किसी मनोकामना के लिए ये व्रत कर रहे हैं तो उसे भी बोलें।
- एक टोकरी में 7 प्रकार का अनाज रखें और इसके ऊपर ब्रह्मा-सावित्री की प्रतिमा रखकर वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के पास जाकर इनकी पूजा करें।
- साथ में भगवान शिव-पार्वती, यमराज और सावित्री-सत्यवान की पूजा भी करें। नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए देवी सावित्री को जल से अर्घ्य दें-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तुते।।

- वट वृक्ष पर जल चढ़ाएं और ये मंत्र बोलें-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमै:।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैस्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।

- बरगद के पेड़ पर कच्चा सूत लपेटते हुए 11 परिक्रमा करें। अपने परिवार की बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लें।
- पूजा के आरती करें और सावित्री-सत्यवान की कथा भी सुनें। बिना कथा सुने व्रत का संपूर्ण फल नहीं मिलता।

वट सावित्री व्रत की कथा (Story of Vat Savitri Vrat)

पुराणों के अनुसार, किसी समय भद्र देश पर राजा अश्वपति का शासन था। उनकी पुत्री का नाम सावित्री था। सावित्री का विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ। शत्रुओं से मिली हार के कारण राजा द्युमत्सेन जंगल में अपने परिवार के साथ रहते थे। सत्यवान की आयु कम है, ये जानकर भी सत्यवती ने उनसे विवाह किया। जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया तो सावित्री भी अपने पति के साथ जंगल में गई। जब यमराज सत्यवान के प्राण निकालकर ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। सावित्री को लौटाने के लिए यमराज ने उसे कईं वरदान दिए और आखिरकार सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े। उस दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या थी, तभी से इस तिथि पर वट सावित्री व्रत करने की परंपरा शुरू हुई।

Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो ज्योतिषियों द्वारा बताई गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।