Best Age for Child to have Own bedroom:भारत में माता-पिता बच्चों को अपने साथ सुलाते हैं। लेकिन एक उम्र के बाद उनका कमरा अलग कर देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं किस उम्र में बच्चे को अलग सोने के लिए कमरा देना चाहिए।
Parenting Tips: कई बार देखा गया है कि माता-पिता अपने बढ़ते बच्चे को भी साथ में सुलाते हैं। बच्चे को अपने साथ रखने का मोह इतना गहरा होता है कि वो इससे होने वाले नुकसान को देख नहीं पाते हैं। लंबे समय तक को-स्लीपिंग से बच्चे के फिजिकल और मेंटल विकास पर असर पड़ता है। इसलिए सही उम्र पर बच्चे को अलग बेडरूम देना चाहिए।
कुछ चाइल्ड एक्सपर्ट का कहना है कि पेरेंट्स अपने साथ 6 महीने की उम्र तक बच्चे को सुला सकते हैं। जबकि कुछ कहते हैं कि बच्चे को 2 साल या उससे भी ज्यादा वक्त तक सुलाना चाहिए। इससे बच्चे में इमोशनल बॉन्डिंग पेरेंट्स के प्रति मजबूत होता है। को-स्लीपिंग क्या है और ये कितने तरह की होती है इसके बारे में भी जानना बहुत जरूरी है।
को-स्लीपिंग कितनी तरह की होती हैं
रूम शेयरिंग-इसमें कमरा एक होता है लेकिन बिस्तर अलग-अलग होते हैं।
बेड शेयरिंग - इसमें माता-पिता अपने बेड पर ही बच्चे को सुलाते हैं।
अटैच्ड क्रिब - इसमें बच्चे का बिस्तर माता-पिता के बेड से जुड़ा होता है।
को-स्लीपिंग के फायदे
भारत में माता-पिता और बच्चों के बीच इमोशनल बॉन्डिंग बहुत मजबूत होती है। को-स्लीपिंग की वजह से उनकी बॉन्डिंग गहरी होती है। इतना ही नहीं पेरेंट्स और बच्चे दोों को अच्छी नहीं आती है।
को-स्लीपिंग के नुकसान
को-स्लीपिंग से माता-पिता का पर्सनल स्पेस खत्म हो जाता है। बच्चे को उनके साथ सोने की ऐसी आदत लग सकती है कि वो बाद में अकेले सोने से डरने लगते हैं। बेड-शेयरिंग शिशुओं में SIDS (Sudden Infant Death Syndrome) का खतरा बढ़ सकता है।
बच्चे को अलग सुलाने की शुरुआत कैसे करें ?
2 से 3 साल की उम्र तक बच्चे को खुद के रूम में सुलाएं लेकिन बिस्तर अलग कर दें।
4 से 6 साल की उम्र तक बच्चे को उसके खुद के कमरे में ट्रांज़शन करना शुरू किया जा सकता है। हालांकि प्रोसेस धीरे-धीरे शुरू करें।
6 साल से ऊपर के बच्चों को उनका खुद का कमरा देना आत्मनिर्भरता, प्राइवेसी और डेली रूटीन के लिहाज से फायदेमंद होता है।
बच्चे को अलग सुलाने के फायदे
आत्मनिर्भरता: बच्चा खुद से सोने, उठने और तैयार होने की आदत डालता है।
प्राइवेसी की समझ: उसे खुद की स्पेस की अहमियत समझ में आती है।
रूटीन विकसित होता है: नींद और पढ़ाई के टाइम को लेकर अनुशासन आता है।
भावनात्मक विकास: अपने फैसले खुद लेना और छोटे-मोटे डर से निपटना सीखता है।
दूसरे कमरे में शिफ्टिंग को कैसे आसान बनाएं?
एक साथ कमरा सजाएं – जिससे बच्चा एक्साइटेड हो
शुरुआत में पैरेंट्स कुछ देर कमरे में साथ रहें
नाइट लैंप या पसंदीदा खिलौना साथ रखें
सोने का रूटीन सेट करें – कहानी, गाना या प्रार्थना
बच्चे को प्रोत्साहित करें और छोटे लक्ष्य पर शाबाशी दें