Premanand Maharaj on Relationship: प्रेमानंद महाराज के प्रवचन सुनकर लाखों-करोड़ों लोग अपने जीवन में परिवर्तन ला रहे हैं। उनकी कहीं गई बातें सरल लेकिन इफेक्टिव होती है। हाल ही में उन्होंने बताया कि पति के गलत आचरण पर पत्नी को क्या करना चाहिए।
Premanand Maharaj on Relationship:आज के समय में पति-पत्नी का रिश्ता नाज़ुक होता जा रहा है। संवेदनशीलता की कमी, ईगो, और समझौते की अनिच्छा ने रिश्तों को संघर्षपूर्ण बना दिया है। नतीजा – तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, और रिश्तों में हिंसा तक की नौबत आ रही है। प्रेमानंद महाराज जी, जिनके दरबार में देश-विदेश से लोग अपनी समस्याएं लेकर आते हैं, उन्होंने हाल ही में एक ऐसी महिला को मार्गदर्शन दिया जिसने अपने पति के गलत आचरण से आहत होकर आत्महत्या तक की कोशिश की थी।
गलती को समझें, लेकिन सिर्फ दूसरे की नहीं – अपनी भी
जब महिला ने कहा कि उसे अपने पति के गलत आचरण का पता चला और वो टूट गई, तब महाराज जी ने बड़े ही सहज भाव से कहा,'हम आप सबसे प्रार्थना करते हैं कि अगर तुम्हें अपनी पत्नी की गलती समझ में आई, तो लौट के अपनी गलती देख लो। आप ऐसा नहीं कह सकती कि मेरे द्वारा गलती नहीं हुई है।कोई भी नहीं कह सकता। इसलिए मुझे लगता है समस्या को सुलझाओ और अगर गलती एक दूसरे की समझ में आ जाए तो आगे ऐसी गलती ना करो और संशय मत करो।प्यार बढ़ाओं, अब अपना इतना प्यार बढ़ाओं कि पीछे की गलतियां सब ढक जाए। अगर एक दूसरे के साथ टांग खींचोगे तो तुम्हारा जीवन संकट पूर्ण है। पक्की बात समझ लो।'
महाराज जी की बात रिश्तों की सबसे बड़ी सच्चाई को उजागर करती है , रिश्ते सिर्फ दूसरों की गलतियों पर नहीं, बल्कि दोनों की समझदारी और माफ करने की ताकत पर टिके होते हैं।
अगर कोई सुधरना ही न चाहे तो क्या करें?
इस प्रश्न पर महाराज जी ने दो टूक कहा, ‘अगर कोई भी सुधरना ही नहीं चाहता – चाहे पति हो या पत्नी – तो फिर रास्ता बदलने की जरूरत है। पहले कोशिश करनी चाहिए, प्यार देना चाहिए, सुधारने का पूरा प्रयास करें। लेकिन जब लगने लगे कि सामने वाला बदलने को तैयार ही नहीं है, तो फिर रिश्ते तोड़कर जीवन की नई धारा अपनाना ही समझदारी है। वहीं अगर कोई अपने पुराने गलतियों को छोड़कर बदलना चाहता है, तो उसे सहारा देना चाहिए। और उसकी पुरानी गलतियों की याद नहीं दिलानी चाहिए।’
रिश्ते निभाने हैं तो माफ करना सीखिए
गलती दोनों से हो सकती है, लेकिन सुधार और माफी का रास्ता दोनों को मिलकर अपनाना होता है। संदेह और टकराव को जगह देने की बजाय, प्यार और समझदारी को जगह दें। अगर रिश्ते में सुधार की कोई संभावना न बचे, तो सम्मानपूर्वक दूरी बनाना भी जरूरी है।