अमेरिका ने ईरान के चाबहार पोर्ट (Chabahar Port) के परिचालन को लेकर प्रतिबंधों में दी गई छूट को 29 सितंबर से वापस लेने का फैसला किया है। चाबहार पोर्ट भारत की मदद से विकसित हुआ है। अमेरिका के इस फैसले से भारत की चुनौती बढ़ने वाली है।

Iran Chabahar Port: अमेरिका ने गुरुवार को घोषणा की कि वह ईरान के चाबहार बंदरगाह पर परिचालन के लिए 2018 के प्रतिबंधों में दी गई छूट को 29 सितंबर से वापस ले लेगा। यह तेहरान के खिलाफ वाशिंगटन के "अधिकतम दबाव" अभियान का हिस्सा है। अमेरिका के इस फैसले से भारत के इस क्षेत्र में रणनीतिक और आर्थिक हितों के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा होने की आशंका है। चाबहार बंदरगाह भारत की मदद से बनाया गया है।

ईरान स्वतंत्रता एवं प्रसार-रोधी अधिनियम (IFCA) के तहत दी गई इस छूट ने भारत और अन्य देशों को अमेरिकी दंड के बिना बंदरगाह पर काम जारी रखने की अनुमति दी थी। विदेश विभाग ने कहा कि यह छूट खत्म करना ईरानी शासन और उसकी सैन्य गतिविधियों को पोषित करने वाले अवैध वित्तीय नेटवर्क को बाधित करने के उसके व्यापक प्रयासों का हिस्सा है।

भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है चाबहार पोर्ट

चाबहार पोर्ट भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए भारत को व्यापार मार्ग देता है। भारत से सामान चाबहार पोर्ट जाता है। यहां से उसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक पहुंचाया जाता है।

अमेरिका द्वारा छूट वापस लेने से भारत पर होगा क्या असर?

अमेरिका द्वारा छूट रद्द किए जाने से भारत मुश्किल में पड़ गया है। 13 मई 2024 को नई दिल्ली ने अपना पहला दीर्घकालिक विदेशी बंदरगाह समझौता किया था। यह ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन के साथ साझेदारी में चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल का समझौता है। इसके तहत, इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) ने लगभग 12 करोड़ डॉलर (1058 करोड़ रुपए) का निवेश करने का वादा किया है। इसके साथ ही बंदरगाह के आसपास बुनियादी ढांचे के लिए 25 करोड़ डॉलर (2204 करोड़ रुपए) का अतिरिक्त कर्ज जुटाने की योजना भी बनाई है।

भारत के लिए चाबहार व्यापारिक केंद्र से बढ़कर है। नई दिल्ली ने सबसे पहले 2003 में चाबहार को विकसित करने का प्रस्ताव रखा था। इससे भारत को पाकिस्तान पर निर्भर हुए बिना अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने का रास्ता मिलता है। यह भारत को रूस और यूरोप से जोड़ने वाले अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से भी जुड़ता है। इस बंदरगाह का इस्तेमाल पहले ही अफगानिस्तान को गेहूं की सहायता और अन्य जरूरी सामान भेजने के लिए किया जा चुका है।

भारत चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट को राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा 2018 में अपने पहले कार्यकाल में फिर से लगाए गए प्रतिबंधों के दायरे से बाहर रखने में कामयाब रहा था। अमेरिकी विदेश विभाग ने अफगानिस्तान के लिए इसके महत्व को देखते हुए चाबहार बंदरगाह और इससे संबंधित रेलवे के विकास से संबंधित कुछ प्रतिबंधों से 'छूट' दी थी।

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अमेरिका द्वारा प्रतिबंध में दी गई छूट रद्द करने के बाद भारत के सामने अब अपने निवेश और परियोजना में शामिल कंपनियों की सुरक्षा की चुनौती है। वाशिंगटन का यह फैसला ऐसे संवेदनशील समय पर आया है जब नई दिल्ली अमेरिका और ईरान, दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही इजरायल और खाड़ी सहयोगियों के साथ भी घनिष्ठ संबंध बनाए रख रहा है।

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