अफ़्रीका के हिम्बा जनजाति की औरतें ज़िंदगी में सिर्फ़ एक बार नहाती हैं, वो भी अपनी शादी के दिन! पानी की कमी और सदियों पुरानी परंपरा के चलते, ये लोग 'धुआँ नहाना' जैसी अनोखी विधि अपनाते हैं।
हिम्बा जनजाति की अनोखी परंपराः नहाने से सिर्फ़ शरीर ही नहीं, मन भी साफ़ होता है। हम रोज़ नहाकर ताज़गी महसूस करते हैं। लेकिन, अफ़्रीका के बीचों-बीच एक ऐसी जनजाति है जहाँ औरतें ज़िंदगी में सिर्फ़ एक बार नहाती हैं, ये सुनकर यकीन करना मुश्किल है। लेकिन ये सच है, नामीबिया के रेगिस्तान में रहने वाले हिम्बा जनजाति का यही रिवाज़ है।
नहाना मना है!
हिम्बा जनजाति की औरतें रोज़ नहाती नहीं हैं। ये लोग अपनी परंपराओं को बहुत मानते हैं। सदियों से यहाँ नहाने का ये रिवाज़ चला आ रहा है। मौसम भी इसकी एक बड़ी वजह है। हिम्बा लोग रेगिस्तान में रहते हैं, जहाँ पानी की बहुत कमी है, इसलिए नहाना नामुमकिन सा है। लेकिन, इस पाबंदी के पीछे सिर्फ़ हालात ही नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति भी है।
सिर्फ़ शादी के दिन नहाना
इस जनजाति की औरतें ज़िंदगी में सिर्फ़ एक बार नहाती हैं, वो भी अपनी शादी के दिन। उस दिन वो ख़ास तरीके से नहाकर, अपनी परंपरा के हिसाब से तैयार होती हैं। ये दिखाता है कि वो नहाने को खुशी का मौक़ा मानते हैं। बाकी दिनों में वो साफ़-सफ़ाई के लिए 'धुआँ नहाना' करते हैं। इसमें मिट्टी और नारियल की रस्सी में कुसुम के पौधे की लकड़ी जलाकर उसका धुआँ शरीर पर लगाया जाता है। इससे वो गंदगी, मक्खियाँ और कीड़े-मकोड़ों से बचते हैं।
इसके अलावा, अपनी त्वचा को चमकदार रखने के लिए वो एक ख़ास मिश्रण इस्तेमाल करते हैं। ये जानवरों की चर्बी और लाल मिट्टी से बना तेल होता है, जो नमी बनाए रखता है और तेज़ धूप से त्वचा की रक्षा करता है। हिम्बा लोग अपनी त्वचा और बालों में एक ख़ास मिश्रण लगाते हैं जिसे ओटजिज़ कहते हैं। ये मक्खन, लाल गेरू, और कुछ खुशबूदार फलों को मिलाकर बनाया जाता है। इससे त्वचा की रक्षा होती है, बदबू दूर रहती है, नमी बनी रहती है, और कीड़े-मकोड़े भी नहीं आते।
हिम्बा लोगों की खेती और खाना-पीना
हिम्बा लोग भेड़-बकरियाँ पालते हैं और जैविक संसाधन इकट्ठा करते हैं। गायें भी पालते हैं, लेकिन उनका मांस ख़ास मौकों पर ही खाते हैं। हिम्बा लोगों की अर्थव्यवस्था गायों पर निर्भर है। हर परिवार में गायों को बहुत कीमती माना जाता है। हिम्बा औरतें खाना बनाना, पानी लाना, साफ़-सफ़ाई, गहने बनाना जैसे ज़रूरी काम करती हैं।
संस्कृति और पर्यावरण के साथ तालमेल
हिम्बा लोगों का जीवन शैली हमें सभ्यता के साथ जुड़ने का तरीका सिखाता है। पर्यावरण के साथ कैसे रहना चाहिए, ये इस जनजाति से सीखने वाली बात है। उनकी पारंपरिक जीवनशैली और प्रकृति के साथ उनका तालमेल काबिले-तारीफ़ है। हिम्बा औरतों की परंपराएँ हमारे समाज से अलग हैं, लेकिन उनका जीवन, पर्यावरण का ज्ञान, और अपनी संस्कृति के प्रति समर्पण सराहनीय है। बिना नहाए भी साफ़-सफ़ाई रखने का उनका तरीका हमें नई सोच देता है।