क्या परवेज़ मुशर्रफ ने पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार अमेरिका को सौंप दिए थे? CIA के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाकौ ने इस गुप्त और चौंकाने वाले राज़ का खुलासा किया, जिसमें US, सऊदी और दक्षिण एशिया की शक्ति संतुलन की कहानी जुड़ी है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
वाशिंगटन। पाकिस्तान और अमेरिका के बीच एक चौंकाने वाला राज़ सामने आया है। पूर्व CIA अधिकारी जॉन किरियाकौ ने खुलासा किया कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने देश के न्यूक्लियर हथियारों का नियंत्रण सीधे United States को दे दिया था। किरियाकौ का कहना है कि वाशिंगटन ने लाखों डॉलर की मदद देकर असल में उन्हें “खरीद लिया” और इस तरीके से अमेरिका ने पाकिस्तान के सबसे संवेदनशील हथियारों पर सीधे प्रभाव हासिल कर लिया।
US और मुशर्रफ का गुप्त लेन-देन कैसे हुआ?
किरियाकौ ने बताया कि मुशर्रफ ने सार्वजनिक रूप से अमेरिका के साथ सहयोग दिखाया, लेकिन गुप्त तौर पर पाकिस्तान की सेना और चरमपंथियों को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों की अनुमति दी। उन्होंने कहा, “हमने सैन्य और आर्थिक मदद दी और मुशर्रफ ने हमें वही करने दिया जो हमने सोचा।” इसका मतलब यह है कि अमेरिका ने पाकिस्तान की सुरक्षा और रणनीतिक अभियानों तक लगभग बिना रोक-टोक पहुंच बना ली थी।
सऊदी अरब और AQ खान: क्या न्यूक्लियर गेम में था बड़ा दांव?
पूर्व CIA अधिकारी ने यह भी बताया कि सऊदी अरब ने अमेरिकी योजना को प्रभावित किया। अमेरिकी एजेंसियां पाकिस्तानी वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान को निशाना बनाने वाली थीं, लेकिन सऊदी ने अमेरिका से कहा कि उन्हें अकेला छोड़ दें। इसके पीछे उनकी अपनी न्यूक्लियर महत्वाकांक्षाएं थीं। किरियाकौ ने कहा कि यह एक बड़ी पॉलिसी गलती थी, जिससे दक्षिण एशिया की न्यूक्लियर रणनीति पर असर पड़ा।
अमेरिका की नैतिकता और बदलते वैश्विक संतुलन
किरियाकौ ने अमेरिका की चुनिंदा नीति की आलोचना करते हुए कहा कि वाशिंगटन तानाशाहों के साथ काम करने में सहज है, जबकि लोकतांत्रिक आदर्श और मानवाधिकारों को केवल दिखावा समझता है। उन्होंने यह भी कहा कि सऊदी-अमेरिका संबंध लेन-देन पर आधारित हैं, जहां तेल और हथियार व्यापार प्राथमिकता है।
उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वैश्विक शक्ति का संतुलन बदल रहा है। अब सऊदी अरब, चीन और भारत अपनी रणनीतिक भूमिका बदल रहे हैं और अमेरिका को नए दांव खेलने पड़ रहे हैं। यह खुलासा दक्षिण एशिया की राजनीति और न्यूक्लियर संतुलन को लेकर कई सवाल खड़े करता है।
क्या अमेरिका ने वाकई मुशर्रफ को खरीद लिया था?
जॉन किरियाकौ के इस खुलासे से यह सवाल उठता है कि क्या अमेरिका ने तानाशाहों के साथ अपनी रणनीति के जरिए दक्षिण एशिया की सुरक्षा और न्यूक्लियर हथियारों पर नियंत्रण कर लिया? और क्या पाकिस्तान के हथियार कभी पूरी तरह से सुरक्षित रहे? यह राज़ अब भी कई के लिए मिस्ट्री और चर्चा का विषय बना हुआ है।


