Semiconductor : सेमीकंडक्टर किसी भी डिजिटल डिवाइस का ब्रेन होता है। ये छोटे-छोटे चिप्स रेत (सिलिका) से बनते हैं और कई कॉम्प्लेक्स प्रॉसेस से गुजरते हैं, जैसे वेफर बनाना, फैब्रिकेशन, पैकेजिंग और टेस्टिंग। भारत अब सेमीकंडक्टर का हब बनने जा रहा है।
Semiconductor Manufacturing Process in Hindi : सेमीकंडक्टर हर स्मार्टफोन, लैपटॉप, कार, टीवी, वॉशिंग मशीन और स्मार्ट डिवाइसेस का ब्रेन होता है। इसके बिना कोई भी डिवाइस स्मार्ट नहीं हो सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये नन्ही-सी चिप कैसे बनती है? क्या सिर्फ फैक्ट्री में चिप्स की तरह तैयार हो जाती है? नहीं, ये साइंस, टेक्नोलॉजी का ऐसा कॉम्बिनेशन है, जो रेत के एक छोटे से कण को सुपरपावरफुल ब्रेन में बदल देता है, वो ब्रेन जो AI, स्मार्टफोन, सैटेलाइट और यहां तक कि भारत की डिजिटल ताकत का फाउंडेशन बन चुका है। अब जब भारत सेमीकंडक्टर फैब बनने जा रहा है। सरकार देश को मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भर बना रही है। तब यह जानना जरूरी है कि सेमीकंडक्टर कैसे बनता है? सिलिकॉन की रेत से लेकर माइक्रोचिप बनने तक की पूरी साइंटिफिक प्रॉसेस क्या है?
1. रॉ मैटेरियल: सिलिकॉन की रेत
सेमीकंडक्टर बनाने की शुरुआत सिलिका (SiO2) से होती है, जो प्राकृतिक रूप से रेत में पाया जाता है। भारत के झारखंड, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में हाई क्वालिटी वाली सिलिका रेत (Silicon Sand) उपलब्ध है, जिसे शुद्ध करके सेमीकंडक्टर ग्रेड सिलिकॉन में बदला जाता है। यह शुद्ध सिलिकॉन आगे की प्रोसेसिंग का बेस होता है।
2. इनगॉट बनाना (Purification & Ingot Formation)
प्योर सिलिकॉन को जब क्रिस्टल फॉर्म में बदला जाता है, तब उसे इनगॉट कहते हैं। इसके लिए जोक्रल्स्की मेथड (Czochralski Method) का यूज होता है, जिसमें सिलिकॉन को पिघलाकर उसमें एक बीज क्रिस्टल डाल दिया जाता है। इससे एक लंबा, सिलेंडर की तरह सिलिकॉन इनगॉट बनता है। भारत सरकार की नई फैब योजनाओं के तहत मैन्युफैक्चरिंग गुजरात और तेलंगाना जैसे राज्यों में शुरू होने जा रही है।
3. वेफर कटिंग (Wafer Slicing)
इनगॉट को डायमंड ब्लेड से पतली-पतली स्लाइस में काटा जाता है, जिन्हें वेफर कहा जाता है। ये वेफर ही आगे चलकर माइक्रोचिप्स में बदलते हैं। भारत में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स (Tata Electronics) और वेदांता-फॉक्सकॉन (Vedanta-Foxconn) जैसी कंपनियां अब इस प्रॉसेस को डोमेस्टिक लेवल पर शुरू करने की तैयारी में हैं।
4. वेफर की सफाई और पॉलिशिंग
वेफर को क्लीन रूम में ले जाकर अल्ट्रा-साफ केमिकल्स से धोया जाता है ताकि किसी भी तरह की धूल या अशुद्धि न रहे। इसके बाद वेफर को चमकदार और बिल्कुल स्मूद बनाया जाता है। भारत में क्लीन रूम इन्फ्रास्ट्रक्चर अब तेजी से तैयार हो रहा है ताकि यह प्रॉसेस लोकल स्तर पर संभव हो सके।
5. फोटोलिथोग्राफी यानी डिजाइन की प्रिंटिंग
अब आता है सेमीकंडक्टर का सबसे कॉम्प्लेक्स और क्रिएटिव स्टेप फोटोलिथोग्राफी (Photolithography)। इसमें वेफर पर एक लाइट-सेंसिटिव लेयर (Photoresist) चढ़ाई जाती है और फिर उस पर एक मास्क के जरिए डिजाइन प्रोजेक्ट किया जाता है। UV लाइट से एक्सपोज करके वह पैटर्न वेफर पर ट्रांसफर होता है। इस तकनीक में भारत में अभी विदेशी कंपनियों की मदद ली जा रही है, लेकिन DRDO और ISRO इस पर रिसर्च में लगी हुई हैं।
6. Etching और Doping
फोटोलिथोग्राफी के बाद जो अनचाहे हिस्से होते हैं, उन्हें हटाने के लिए एचिंग (Etching) की जाती है और फिर डोपिंग (Doping) से वेफर पर जरूरी अशुद्धियां (Impurities) डाल दी जाती हैं, ताकि उसमें कंडक्टिविटी (Conductivity) यानी इलेक्ट्रोलाइटिक लाई जा सके। भारत की तकनीकी यूनिवर्सिटीज और स्टार्टअप्स इस प्रक्रिया के इंडिजेनस डेवलपमेंट पर काम कर रहे हैं।
7. लेयरिंग और इंटरकनेक्शन
इसके बाद मल्टीपल लेयर्स चढ़ाई जाती हैं कंडक्टर्स (Conductors) जैसे कि तांबा या एल्युमिनियम और इंसुलेटर्स। ये लेयर्स ट्रांजिस्टर, कैपेसिटर और अन्य कंपोनेंट्स को आपस में जोड़ने का काम करती हैं। भारत में इसकी जरूरत को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में भारी निवेश हो रहा है।
8. टेस्टिंग और पैकेजिंग
सबसे आखिरी में हर चिप की टेस्टिंग की जाती है कि वह सही तरीके से काम कर रही है या नहीं। इसके बाद चिप्स को काटकर इंडिविजुअल पैकेज में सील किया जाता है, जिसे हम IC (Integrated Circuit) चिप्स के रूप में जानते हैं। भारत में सूरत और बेंगलुरु जैसे शहर सेमीकंडक्टर पैकेजिंग हब के रूप में उभर रहे हैं।