सार

Rajasthan High Court Judgement : राजस्थान से एक हैरान कर देने वाला मामला आया है। यहां एक भाई अपनी सगी बहन के साथ लिव-इन में रह रहा था। इतना नहीं युवक ने इसको लेकर अपनी जीजा के खिलाफ जोधपुर हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी दायर कर दी। 

जोधपुर. लिव-इन रिलेशनशिप (live in relationship) पर हाईकोर्ट का सख्त फैसला (Court decision) राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) की जोधपुर पीठ ने हाल ही में एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी शादीशुदा बहन को लेकर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी बहन को उसके जीजा ने अवैध रूप से बंधक बना रखा है। हालांकि, जब अदालत ने मामले की गहराई से जांच की, तो सामने आया कि याचिकाकर्ता खुद अपनी बहन के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में होने का दावा कर रहा था।

जानिए क्या बोले जोधपुर हाई कोर्ट के जज

  • अदालत ने याचिका को बताया अनुचित न्यायमूर्ति चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति मदन गोपाल व्यास की खंडपीठ ने इस याचिका को न सिर्फ अस्वीकार कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान अनैतिक संबंधों को मान्यता नहीं देता और ऐसे मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  • संविधान की मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया जा सकता कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारत का संविधान स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन यह अनैतिक संबंधों को मान्यता देने की अनुमति नहीं देता। इस तरह के संबंध भारतीय समाज और पारिवारिक मूल्यों के विपरीत माने जाते हैं।

कोर्ट ने कहा-बहन के बीच कथित संबंध अमान्य'

लिव-इन रिलेशनशिप पर कानूनी दृष्टिकोण भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्राप्त है, लेकिन यह केवल वयस्क, अविवाहित और सहमति से रहने वाले पुरुष और महिला के लिए लागू होता है। यदि कोई संबंध विवाह संस्था को ठेस पहुंचाता है या सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है, तो इसे कानून का संरक्षण नहीं मिल सकता। इस मामले में अदालत ने भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 23 का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी बहन के बीच कथित संबंध 'शुरू से ही अमान्य' हैं।

जज ने कहा-अनैतिक कृत्यों को वैध नहीं ठहराया जा सकता

इस फैसले के जरिए हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का दुरुपयोग करके अनैतिक कृत्यों को वैध नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला अपने विवाह से असंतुष्ट है, तो उसे कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए, न कि गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेना चाहिए।