Tragedy in Rajasthan: जीर्ण स्कूल भवन, मासूमों की चीखें और प्रशासनिक सन्नाटा! झालावाड़ के पीपलोदी गांव में एक पुरानी छत गिरने से 7 बच्चों की मौत, 25 घायल। मंत्री ने स्कूल के सभी 5 स्टाफ को किया सस्पेंड। क्या यही है सरकारी स्कूलों की हकीकत?
Jhalawar school collapse: राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहरथाना क्षेत्र स्थित पीपलोदी गांव में शुक्रवार को जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही का एक दिल दहला देने वाला उदाहरण है। राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की पुरानी और जर्जर छत अचानक उस वक्त ढह गई जब कक्षा में 32 बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। देखते ही देखते चीख-पुकार मच गई और मलबे में दबे मासूमों की जान बचाने की जद्दोजहद शुरू हो गई। इस दर्दनाक हादसे के बाद राजस्थान के शिक्षामंत्री ने एक्शन लेते हुए स्कूल के सभी पांच स्टाफ को तत्काल सस्पेंड कर दिया। पूरी घटना के जांच के आदेश भी दिए हैं।
सन्न रह गए गांववाले, मांओं की चीखों से गूंजा इलाका
हादसे के बाद गांव में मातम पसर गया। पीड़ित बच्चों की मांएं बेसुध होकर स्कूल के बाहर चीखती-चिल्लाती रहीं। कुछ ही देर में गांव में सैकड़ों लोग जमा हो गए और खुद राहत-बचाव में जुट गए। पुलिस और प्रशासन की टीमें भी मौके पर पहुंचीं, लेकिन तब तक कई मासूमों की सांसें थम चुकी थीं।
शिक्षा मंत्री का एक्शन मोड, स्कूल स्टाफ को किया सस्पेंड
घटना की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने सख्त कदम उठाते हुए विद्यालय के सभी 5 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। कार्यवाहक प्रधानाचार्य मीना गर्ग, शिक्षक बद्रीलाल, रामविलास लववंशी, कन्हैयालाल और जावेद अहमद को सस्पेंड किया गया है। मंत्री के अनुसार, अब किसी भी लापरवाह अधिकारी को बख्शा नहीं जाएगा।
पुरानी शिकायतें नजरअंदाज, आखिर कब सुधरेगा सरकारी सिस्टम?
ब्लॉक शिक्षा अधिकारी प्रमोद बंसल ने बताया कि यह स्कूल 1992 से पहले बना था और पंचायत द्वारा 1994 में हॉल का निर्माण कराया गया था। इसी हॉल की छत गिरने से यह दर्दनाक घटना घटी। स्थानीय लोगों और शिक्षकों द्वारा पहले भी इसकी हालत को लेकर शिकायतें की गई थीं, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। दांगीपुरा थाना अधिकारी विजेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि छत गिरने के समय कक्षा संचालित थी। हादसे में एक शिक्षक को भी मामूली चोट आई है, लेकिन उनकी हालत स्थिर है।
क्या यह मौतें टाली जा सकती थीं? उठ रहे गंभीर सवाल
इस हादसे ने सरकारी स्कूलों की दुर्दशा को फिर से सामने ला दिया है। करोड़ों के बजट होने के बावजूद जर्जर भवनों में बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं। अब सवाल ये है- क्या इन मासूमों की मौत प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा नहीं है? क्या किसी अधिकारी पर होगी आपराधिक कार्रवाई?
जांच के नाम पर फाइलें चलेंगी या जिम्मेदार जेल जाएंगे?
हादसे के बाद पूरे इलाके में मातम है। सरकारी अधिकारी पीड़ित परिवारों से मिल रहे हैं, सांत्वना दे रहे हैं, लेकिन आम जनता यह पूछ रही है कि क्या एक बार फिर सिर्फ जांच और मुआवजा देकर मामला रफा-दफा कर दिया जाएगा? या इस बार सजा मिलेगी उन लोगों को जिन्होंने इन मासूमों की जिंदगी को खतरे में डाला?