ठाकुरगंज विधानसभा चुनाव 2025 में क्या राजद के सौद आलम अपनी भारी जीत दोहराएंगे या जेडीयू-लोजपा के पुराने खिलाड़ी बाजी मार लेंगे? नौशाद आलम और गोपाल अग्रवाल की किस्मत क्या इस बार बदलेगी?

Thakurganj Assembly Election 2025: ठाकुरगंज विधानसभा चुनाव 2025 (Thakurganj Assembly Election 2025) सीमांचल की सबसे चर्चित सीटों में से एक माना जा रहा है। किशनगंज जिले की यह सीट हर बार नए राजनीतिक समीकरणों और कड़े मुकाबलों के लिए जानी जाती है। 2010 और 2015 में नौशाद आलम (Naushad Alam) ने अलग-अलग दलों से जीत दर्ज की थी, जबकि 2020 में राजद (RJD) के सौद आलम (Saud Alam) ने भारी मतों से जीत हासिल की थी। अब 2025 में देखना दिलचस्प होगा कि क्या सौद आलम अपनी सीट बचा पाएंगे या फिर कोई नया चेहरा उभरेगा।

ठाकुरगंज विधानसभा सीट का इतिहास

ठाकुरगंज विधानसभा सीट का इतिहास बताता है कि यहां जातीय समीकरण, सीमांचल का विकास, सड़क, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे निर्णायक भूमिका निभाते हैं। खास बात यह है कि गोपाल कुमार अग्रवाल (Gopal Kumar Agarwal) हर चुनाव में बतौर प्रमुख प्रत्याशी सामने आते रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें जीत नहीं मिल पाई।

2010 ठाकुरगंज विधानसभा चुनाव

2010 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नौशाद आलम ने जीत दर्ज की। उन्हें 36,372 वोट मिले, जबकि जेडीयू (JDU) उम्मीदवार गोपाल कुमार अग्रवाल को 29,409 वोट ही हासिल हो पाए। नौशाद ने गोपाल को 6,963 वोटों से हराया।

2015 ठाकुरगंज विधानसभा चुनाव

2015 में नौशाद आलम ने दल बदलकर जेडीयू का टिकट लिया और फिर से जीत दर्ज की। उन्हें 74,239 वोट मिले, जबकि लोजपा (LJP) के गोपाल कुमार अग्रवाल को 66,152 वोट ही मिले। जीत का अंतर 8,087 वोटों का रहा। इस जीत ने नौशाद आलम की पकड़ और मजबूत कर दी।

2020 ठाकुरगंज विधानसभा चुनाव

2020 में समीकरण पूरी तरह बदल गए। राजद (RJD) के सौद आलम ने शानदार जीत दर्ज की। उन्हें 79,909 वोट मिले, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार गोपाल कुमार अग्रवाल को 56,022 वोट ही हासिल हो पाए। जीत का अंतर 23,887 वोटों का रहा। इस चुनाव में नौशाद आलम (जेडीयू) तीसरे स्थान पर चले गए और उन्हें केवल 22,082 वोट मिले। यह नतीजा ठाकुरगंज की राजनीति में बड़ा मोड़ साबित हुआ।

अब 2025 में क्या होगा?

ठाकुरगंज विधानसभा चुनाव 2025 (Thakurganj Vidhan Sabha Election 2025) में मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता है। राजद के सौद आलम अपने प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश करेंगे, जबकि जेडीयू और लोजपा अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मेहनत कर रही हैं। गोपाल अग्रवाल का लगातार प्रयास जारी है, लेकिन क्या उन्हें इस बार जीत का स्वाद मिलेगा? यही सबसे बड़ा सवाल है।