बिहार के CM नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के आरोपों पर कई मंत्रियों से इस्तीफा लेकर अपनी 'सुशासन बाबू' की छवि को बरकरार रखा है। लेकिन अब प्रशांत किशोर उनके कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं। बावजूद इसके सीएम नीतीश चुप्पी साधे हुए हैं।
पटनाः बिहार की राजनीति में ‘सुशासन बाबू’ के नाम से पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव और निर्णायक कदमों से भरा रहा है। पिछले लगभग दो दशक में उन्होंने अपने सरकार की छवि को साफ-सुथरा और भ्रष्टाचार विरोधी बनाए रखने के लिए कई कठिन फैसले लिए हैं। इनमें सबसे अहम है उन मंत्रियों से इस्तीफा लेना, जिन पर भ्रष्टाचार या किसी विवाद के आरोप लगे थे।
नीतीश कुमार की यह नीति उन्हें बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान देती है। उन्होंने न केवल अपने सहयोगी दलों के नेताओं को, बल्कि अपनी ही पार्टी के मंत्रियों को भी बिना देरी किए जिम्मेदारी से हटाया, ताकि उनकी सरकार की ईमानदारी और पारदर्शिता पर कोई सवाल न उठे।
1. जीतन राम मांझी (2005)
नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल के दौरान, तत्कालीन कल्याण मंत्री जीतन राम मांझी पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला घोटाले का आरोप लगा। मुख्यमंत्री ने तत्काल उनसे इस्तीफा मांग लिया। हालांकि बाद में मांझी को क्लीन चिट मिल गई और वे नीतीश के विश्वासपात्र बने। बाद में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री भी बनाया गया।
2. रामानंद सिंह (2008)
तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री रामानंद सिंह पर सरकारी भूमि के एक मामले में आरोप लगे। नीतीश कुमार ने प्रारंभिक जांच के आधार पर उनसे इस्तीफा ले लिया। यह कदम सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को बनाए रखने के लिए अहम था।
3. अवधेश कुशवाहा (2015)
साल 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री अवधेश कुशवाहा को एक स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। नीतीश ने तुरंत उनका इस्तीफा स्वीकार किया। इस फैसले से चुनाव से पहले सरकार की छवि को किसी तरह का धक्का नहीं लगा।
4. मंजू वर्मा (2018)
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड के बाद समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का नाम सुर्खियों में आया। उनके पति पर कांड के मुख्य आरोपी से संबंध होने का आरोप था। राजनीतिक दबाव और मामले की गंभीरता को देखते हुए नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा लिया।
5. मेवालाल चौधरी (2020)
शपथ लेने के कुछ ही घंटों बाद शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी के खिलाफ भ्रष्टाचार के पुराने आरोप फिर से सामने आए। नीतीश ने विपक्ष के हमले और सरकार की ईमानदारी बनाए रखने के लिए तत्काल उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
6. कार्तिक कुमार (2022)
कानून मंत्री कार्तिक कुमार पर अपहरण के पुराने मामले में वारंट होने के बावजूद शपथ लेने का आरोप लगा। विवाद बढ़ने पर उन्हें विभाग बदलकर अन्य जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन अंततः उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
दागदार छवि वालों को बर्दाश्त नहीं करते
नीतीश कुमार की यह कार्यशैली साफ-साफ दर्शाती है कि वे अपनी सरकार में दागदार छवि वाले मंत्रियों को बर्दाश्त नहीं करते। उनकी यह नीति सरकार की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण रही है।
हालाँकि, हाल ही में जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने नीतीश सरकार के तीन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। इसके बावजूद न तो जदयू, न भाजपा और न ही मुख्यमंत्री ने कोई आधिकारिक बयान दिया है। यह चुप्पी भी उनके निर्णयों और सख्त नीति की ओर इशारा करती है।
नीतीश कुमार की सख्ती ने उन्हें बिहार की राजनीति में एक विशेष पहचान दी है—जहां साफ-सुथरी और ईमानदार सरकार के लिए उन्होंने अपने राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर कदम उठाए हैं। यह नीति चुनावी मौसम में भी उनके राजनीतिक संदेश को मजबूत बनाती है और यह साबित करती है कि बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता वास्तविक है।