बिहार चुनाव में महिला मतदाता निर्णायक हैं, जिनका वोट प्रतिशत पुरुषों से ज़्यादा है। NDA और महागठबंधन विशेष योजनाओं से इस जाति-निरपेक्ष वोट बैंक को लुभा रही हैं।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार जातीय समीकरण और गठबंधन की खींचतान जितनी अहम है, उससे कहीं ज्यादा चर्चा महिलाओं के वोट की हो रही है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अब तक चुनाव का खेल जातीय और धार्मिक समीकरण तय करते थे, लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। महिला मतदाता सत्ता की दिशा और दशा तय करने वाले सबसे बड़े फैक्टर के रूप में उभर चुकी हैं।

आंकड़े जो बदल रहे राजनीति का समीकरण

  • अगर आंकड़ों पर भरोसा करें तो महिलाओं की भागीदारी लगातार पुरुषों से आगे रही है।
  • 2015 विधानसभा चुनाव में कुल 56.88% मतदान हुआ था। इसमें महिलाओं ने 60.48% वोट डाला, जबकि पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 53.3% रही।
  • 2020 के विधानसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड जारी रहा। 57.02% कुल मतदान में महिलाओं का हिस्सा 56.6% और पुरुषों का 54.45% था।
  • 2019 लोकसभा चुनाव में भी महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 59.58% रहा, जबकि पुरुषों का केवल 54.9%।
  • पिछले 10 सालों के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं हर बार वोट डालने में पुरुषों से आगे रहीं। यानी बिहार में सत्ता की असली चाबी अब महिलाओं के हाथ है।

एनडीए का चुनावी मास्टरस्ट्रोक

महिला वोट बैंक को साधने के लिए सत्ताधारी एनडीए ने बड़ा दांव खेला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संयुक्त रूप से महिला रोजगार योजना की शुरुआत की है। इसके तहत राज्य की हर महिला के खाते में 10 हजार रुपये सीधे ट्रांसफर किए जाएंगे।

इसके अलावा, सरकार ने आंगनबाड़ी सेविकाओं, आशा वर्करों, जीविका दीदियों और महिला शिक्षिकाओं के लिए कई घोषणाएं की हैं। नीतीश कुमार का मानना है कि महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी तो परिवार और समाज मजबूत होगा, और यही बिहार के विकास की कुंजी है।

महागठबंधन का पलटवार

विपक्ष भी पीछे नहीं है। राजद और कांग्रेस ने मिलकर ‘माई-बहिन योजना’ का ऐलान किया है। इस योजना के तहत जरुरतमंद महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये की आर्थिक मदद, परिवार के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा और भूमिहीन परिवारों को महिलाओं के नाम पर जमीन देने का वादा किया गया है।

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने पटना की रैली में कहा कि “महिलाओं ने हमेशा बदलाव की राजनीति को ताकत दी है, लेकिन भाजपा-जदयू की सरकार ने अब तक उन्हें केवल वादे और धोखा दिया है।” वहीं तेजस्वी यादव ने कहा कि “महिलाएं सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि बिहार के विकास की धुरी हैं।”

जातीय और धार्मिक सीमाओं से ऊपर महिला वोट बैंक

महिला वोट बैंक इसलिए भी खास है क्योंकि यह जातीय सीमाओं में बंधा नहीं है। आंकड़ों के हिसाब से बिहार में यादव महिलाएं 14.46%, अनुसूचित जाति महिलाएं 19.6%, मुस्लिम महिलाएं 17.8%, जबकि राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और अन्य वर्गों की महिलाएं भी बड़ी संख्या में हैं।

राजनीतिक दल जानते हैं कि अगर ये वोट एकजुट होकर किसी एक दिशा में चले गए तो पूरा चुनावी गणित बदल सकता है। यही वजह है कि हर पार्टी महिला मतदाताओं को अपने पाले में खींचने के लिए घोषणाओं और वादों की झड़ी लगा रही है।

दूसरे राज्यों से सबक

बिहार में यह ट्रेंड नया भले लगे, लेकिन देश के अन्य राज्यों में पहले से इसकी मिसाल मौजूद है। झारखंड में ‘मैय्या सम्मान योजना’ ने हेमंत सोरेन की सत्ता वापसी कराई थी। वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा की ‘लाडली लक्ष्मी योजना’ ने चुनावी तस्वीर पलट दी थी। ऐसे में अब माना जा रहा है कि बिहार में भी महिलाएं निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। यह वही वोट बैंक है, जिसे जीतने वाला दल सत्ता के सिंहासन तक पहुंच सकता है।