Mahabharat Interesting Fact: बहुत कम लोगों को पता है कि पांडु पुत्र अर्जुन का एक शिष्य भी था, जो पराक्रम में उन्हीं की तरह था। युद्ध के दौरान अर्जुन के इस शिष्य ने कौरव सेना में तबाही मचा दी थी। कईं स्थानों पर इन्हें दूसरा अर्जुन भी कहा गया है।
Interesting facts about Mahabharata: महाभारत में ऐसे अनेक पात्र हैं जो महत्वपूर्ण होते हुए भी गुमनाम हैं। इनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। ऐसे ही एक पात्र हैं सात्यकि। ये अर्जुन के शिष्य और भगवान श्रीकृष्ण के सारथी थे। अर्जुन के शिष्य होने से सात्यकि भी उन्हीं की तरह पराक्रमी थे। युद्ध के दौरान इन्होंने कौरव सेना में खलबली मचा दी थी, इसलिए इन्हें दूसरा अर्जुन भी कहा गया है। जानें सात्यकि से जुड़ी रोचक बातें…
किसके पुत्र थे पराक्रमी सात्यकि?
महाभारत के अनुसार, सात्यकि का जन्म यादव कुल में हुआ था और वे एक राजकुमार थे। सात्यकि भगवान श्रीकृष्ण के मित्र भी थे और सारथि भी। जब भगवान श्रीकृष्ण शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए थे, उस समय उनका रथ सात्यकि ही चला रहे थे। सात्यकि के और भी कईं नाम थे, जिनमें दारुक, युयुधान और शैनेय प्रसिद्ध है। सत्यक के पुत्र होने से इनका सात्यकि नाम अधिक प्रचलित है।
सात्यकि को क्यों कहते हैं दूसरा अर्जुन?
महाभारत के अनुसार, पांडु पुत्र अर्जुन ने ही सात्यकि को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था, इसलिए वे युद्ध की सभी कलाओं में पारंगत थे। कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध के दौरान सात्यकि ने कईं बार ऐसा पराक्रम दिखाया कि बड़े-बड़े योद्धा इस भ्रम में पड़ गए गए कि ये सात्यकि हैं या स्वयं अर्जुन युद्ध कर रहे हैं। सात्यकि ने त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरि और कर्णपुत्र प्रसन आदि कईं महाबली योद्धाओं को पराजित किया।
श्रीकृष्ण ने सौंपा था युधिष्ठिर की रक्षा का भार
जब कौरवों ने अभिमन्यु का वध कर दिया तो इसके बाद अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा। उस समय श्रीकृष्ण को ये डर था कि कहीं कौरव सेना युधिष्ठिर को बंदी न बना लें, इसलिए उन्होंने सात्यकि को युधिष्ठिर का रक्षक बनाया ताकि कौरव सेना उन तक नहीं पहुंच सके। सात्यकि ने गुरु द्रोण और कर्ण से युद्ध कर उन्हें भी युधिष्ठिर के पास नहीं आने दिया।
कैसे हुई सात्यकि की मृत्यु?
जब महाभारत युद्ध समाप्त हो गया तो पांडव व श्रीकृष्ण के साथ अलावा जो योद्धा जीवित बचे थे, सात्यकि भी इनमें से एक थे। इसके कईं सालों बाद जब गांधारी के श्राप के कारण यदुवंशियों का अंत होने वाला था, उस समय सभी प्रभास क्षेत्र में इकट्ठा हुए। वहां किसी बात पर यादवों में युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में सात्यकि ने राजा कृतवर्मा का वध कर दिया, अपने पिता का बदला लेने के लिए कृतवर्मा के पुत्रों ने सात्यकि को मार दिया।
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इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।