Ambubachi Mela 2025: असम के कामाख्या शक्तिपीठ मंदिर में हर साल आषाढ़ मास में अंबुबाची मेला लगता है, इस दौरान मंदिर के पट 3 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं और अनेक परंपराओं का पालन किया जाता है।
Kyo Lagta Hai Ambubachi Mela: हमारे देश में देवी के अनेक प्रसिद्ध और चमत्कारी मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर। ये मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। मान्यता है कि इसी स्थान पर देवी सती का योनी भाग गिरा था। ये मंदिर प्रसिद्ध तंत्र स्थान के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए यहां दूर-दूर से तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं। आगे जानिए इस बार कब से शुरू होगा अंबुबाची मेला और इससे जुड़ी रोचक बातें…
किस महीने में लगता है अंबुबाची मेला?
हर साल आषाढ़ मास में यहां अंबुबाची मेला लगता है। इस दौरान मंदिर के पट 3 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं, कोई भी मंदिर में प्रवेश नहीं करता। अंबुबाची मेले से जुड़ी बहुत ही अजीब और रोचक है, जिसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है।
कितने दिनों का होता है अंबुबाची मेला?
इस बार अंबुबाची मेले की शुरूआत 22 जून से हो रही है जो 26 जून तक रहेगा। इस दौरान पहले 3 दिनों तक मंदिर के कपाट बंद रहेंगे यानी 25 जून तक। इसके बाद मंदिर के पट खुलने पर विशेष पूजा की जाएगी और भक्त मंदिर में दर्शन कर सकेंगे। अंबुबाची मेले के दौरान यहां तांत्रिकों का जमघट लगता है।
क्या है अंबुबाची मेला, क्यों लगता है?
अंबुबाची मेले से जुड़ी मान्यता काफी रोचक है। कहते हैं कि जिस तरह एक स्त्री को महीने में 3 दिन मासिक धर्म (पीरियड) होता है, उसी तरह माता कामाख्या भी साल में 3 दिनों के लिए मासिक धर्म में होती है। इन 3 दिनों में कामाख्या मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। कपाट बंद करने से पहले मंदिर में स्थित योनी भाग के ऊपर एक सफेद वस्त्र रखा जाता है, मंदिर खुलने पर ये वस्त्र लाल नजर आता है। मान्यता है कि माता की योनी से निकलने वाले रक्त के कारण ऐसा होता है।
नदी का पानी भी हो जाता है लाल
अंबुबाची मेले के दौरान जब माता मासिक धर्म में होती है तो पास ही बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का रंग भी तीन दिनों के लिए लाल हो जाता है, जिसे देवी के मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है। पूरे भारत में ऐसी मान्यता अन्य किसी मंदिर में देखने को नहीं मिलती। यही कारण के अंबुबाची मेले के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
कामाख्या शक्तिपीठ की कथा
देवी पुराण के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष की पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुए था। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें महादेव और सती को नहीं बुलाया। शिवजी के मना करने पर भी देवी सती उस यज्ञ में गई और अपने पति के अपमान से दुखी होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपना शरीर त्याग दिया। सती की मृत्यु से दुखी महादेव उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे। उनके मोह को भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। देवी सती के शरीर के टुकड़े जहां-जहां गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि देवी सती का योनी भाग गिरा जहां गिरा, वहीं कामाख्या शक्तिपीठ का निर्माण हुआ।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।