Vat Savitri Purnima Vart 2025: ज्येष्ठ मास के अंतिम दिन यानी पूर्णिमा तिथि पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस बार ये तिथि 2 दिन है, जिसके चलते इस व्रत को लेकर लोगों के मन में भ्रम की स्थिति बन रही है। जानें कब करें वट सावित्री व्रत?
Vat Savitri Purnima Vart 2025 Kab Hai: धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व पुराणों में बताया गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पति की उम्र भी लंबी होती है, साथ ही संतान सुख भी मिलता है। इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 2 दिन है, जिसके कारण इस व्रत को लेकर लोगों के मन में संदेह है, जानें इस व्रत की सही डेट, पूजा विधि, शुभ योग और मुहूर्त की डिटेल…
कब करें वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 2025? (Vat Savitri Purnima Vart 2025 Date)
पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि 10 जून, मंगलवार की सुबह 11 बजकर 35 मिनिट से शुरू होगी जो 11 जून, बुधवार की दोपहर 01 बजकर 13 मिनिट तक रहेगी। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, वट सावित्री व्रत को लेकर भक्त बिल्कुल भी भ्रमित न हो, ये व्रत 10 जून, मंगलवार को किया जाएगा। इस दिन सिद्ध, साध्य और रवि नाम के शुभ योग भी रहेंगे, जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 2025 शुभ मुहूर्त (Vat Savitri Purnima Vart 2025 Shubh Muhurat)
- सुबह 09:05 से 10:45 तक
- सुबह 10:45 से दोपहर 12:26 तक
- सुबह 11:59 से दोपहर 12:53 (अभिजीत मुहूर्त)
- दोपहर 12:26 से 02:06 तक
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पूजा विधि (Vat Savitri Purnima Vart Puja Vidhi)
- 10 जून, मंगलवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें।
- ऊपर बताए किसी शुभ मुहूर्त में एक टोकरी में 7 तरह के अनाज और भगवान ब्रह्मा और देवी सावित्री की प्रतिमा रख वट वृक्ष के पास जाकर इनकी पूजा करें।
- इनके साथ में शिव-पार्वती, यमराज और सावित्री-सत्यवान की पूजा भी जरूर करें और ये मंत्र बोलकर जल चढ़ाएं-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तुते।।
- इसके बाद वट वृक्ष पर भी जल चढ़ाएं और ये मंत्र बोलें-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमै:।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैस्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।
- पूजा करने के बाद वट वृक्ष की 11 या 21 परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय उस पर कच्चा सूत भी लपेटते जाएं।
- वट वृक्ष के नीचे शुद्ध घी का दीपक लगाएं। घर आकर परिवार की बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लें और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें।
ये है सावित्री और सत्यवान की कथा (Savitri-Satyvan ki Katha)
- किसी समय अश्वपति नाम के एक राजा था। उनकी पुत्री सावित्री का विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ था लेकिन दुश्मनों द्वारा पराजित होने के कारण सत्यवान अपने परिवार सहित जंगल में रहता था और उसकी आयु में कम थी।
- ये सब जानकर भी सावित्री ने उससे विवाह किया। जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया तो उस दिन सावित्री भी अपने पति के साथ गई। जब यमराज उसके शरीर से प्राण निकालकर ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी।
- यमराज ने सावित्री को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह नहीं मानी। यमराज ने सावित्री को अनेक वरदान दिए और आखिरकार सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े। वट सावित्री के व्रत में ये कथा जरूर सुननी चाहिए, तभी व्रत का पूरा फल मिलता है।
Disclaimer
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