सार

Shivratri Vrat April 2025: हर महीने में एक बार शिवरात्रि व्रत किया जाता है। इसे मासिक शिवरात्रि कहते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा रात्रि में करने का विधान है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

 

Shivratri Vrat April 2025: धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा रात्रि में की जाती है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव स्वयं हैं। इसी तिथि पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे, इसलिए ये तिथि शिव पूजन के लिए बहुत खास मानी गई है। आगे जानिए अप्रैल 2025 में कब करें मासिक शिवरात्रि व्रत, पूजा विधि, मंत्र-मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…

अप्रैल 2025 में कब करें मासिक शिवरात्रि व्रत?

पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 अप्रैल, शनिवार की सुबह 08 बजकर 28 मिनिट से शुरू होगी, जो 27 अप्रैल,रविवार की सुबह 04 बजकर 50 मिनिट तक रहेगी। चूंकि चतुर्दशी तिथि 26 अप्रैल को रात भर रहेगी, इसलिए इसी दिन मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाएगा।

वैशाख मासिक शिवरात्रि के मुहूर्त (April Masik Shivratri 2025 Shubh Muhurat)

मासिक शिवरात्रि व्रत में भगवान शिव की पूजा रात्रि में चार बार की जाती है। 26 अप्रैल, शनिवार की रात का प्रथम प्रहर शाम 6 से रात 9 बजे तक रहेगा, दूसरा रात 9 से 12 बजे के बीच, तीसरा रात 12 से 3 बजे के बीच और चौथे प्रहर की पूजा तड़के 3 से सुबह 6 बजे के बीच करें।

मासिक शिवरात्रि व्रत-पूजा की विधि (Masik Shivratri Vrat-Puja Vidhi)

- 26 अप्रैल, शनिवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर कुछ भी खाए-पिएं नहीं। ऐसा करना संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं।
- रात को शुभ मुहूर्त में मासिक शिवरात्रि की पूजा करें। शिवलिंग का पहले साफ पानी से फिर दूध से और बाद में पुन: साफ जल से अभिषेक करें। इसके बाद फूल चढ़ाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- इसके बाद अबीर, गुलाल, रोली, बिल्व पत्र, धतूरा आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। रात में अन्य प्रहर में भी इसी तरह शिवलिंग की पूजा करें और भोग लगाकर आरती करें।


 

भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो ज्योतिषियों द्वारा बताई गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।