गर्मागर्म बहसः वंदे भारत में इडली-डोसा नहीं, सिर्फ़ उत्तर भारतीय खाना?
वंदे भारत एक्सप्रेस में दक्षिण भारतीय खाने की कमी पर मलयालम लेखक ने सवाल उठाए हैं। बेंगलुरु-कोयंबटूर वंदे भारत में दक्षिण भारतीय व्यंजन न होने से सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। क्या ये उत्तर भारतीय खाने को थोपना है?
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केंद्र सरकार कुछ सुविधाएं देकर दक्षिण भारत के राज्यों पर हिंदी थोप रही है, इस विरोधाभास के बीच अब रेलवे द्वारा दक्षिण भारत में चलने वाली वंदे भारत ट्रेन में भी उत्तर भारतीय खाना थोपा जा रहा है। यहाँ दक्षिण भारतीयों का हेल्दी खाना और नाश्ता जैसे इडली, डोसा वगैरह मेनू में ही नहीं है, ऐसा कहकर एक मलयालम लेखक ने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर किया है जिस पर ज़ोरदार बहस शुरू हो गई है।
दुनिया भर में दक्षिण भारतीय खाने की खास पहचान है। दक्षिण भारत के कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल, हर राज्य में अलग-अलग तरह के खाने की अपनी पहचान है। दक्षिण भारतीय खाने में नमक, मिर्च, खट्टा, मीठा, सबका मज़ा मिलता है।
लेकिन, वंदे भारत ट्रेन के खाने के मेनू में दक्षिण भारतीय व्यंजन ही नहीं हैं, ऐसा कहकर मलयालम लेखक एन.एस. माधवन ने नाराज़गी जताई है और एक्स पर पोस्ट शेयर किया है। उनका पोस्ट वायरल हो गया है और हिंदी भाषा के बाद अब खाने और संस्कृति भी थोपी जा रही है, इस बहस को हवा मिल गई है।
आमतौर पर ट्रेन में मिलने वाला खाना उत्तर भारतीय होता है और ज़्यादातर दक्षिण भारतीय यात्रियों को इससे परेशानी होती है। ट्रेन में मिलने वाली चाय, कॉफ़ी, पुलाव, कुछ भी अच्छा नहीं होता। नमक, मिर्च, कोई स्वाद ही नहीं होता, ऐसा कहकर मलयालम लेखक ने आवाज़ उठाई है। हर राज्य, हर क्षेत्र की अपनी संस्कृति, अपना खाना होता है और उन्हें अपने घर का खाना ही ज़्यादा पसंद आता है, ऐसा उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है।
पहले भाषा, अब खाना थोपा जा रहा है: पोस्ट शेयर करने वाले मलयालम लेखक एन.एस. माधवन बेंगलुरु से कोयंबटूर वंदे भारत ट्रेन में सफ़र कर रहे थे। खाना ऑर्डर करते समय उन्होंने देखा कि दक्षिण भारतीय खाने का कोई विकल्प ही नहीं था। इससे नाराज़ होकर माधवन ने लिखा, 'ये लोग भाषा थोपने की बात करते हैं। खाने के बारे में क्या कहेंगे? ये दक्षिण भारत की वंदे भारत ट्रेनों में मिलने वाले खास नाश्ते हैं। ये बेंगलुरु-कोयंबटूर वंदे भारत ट्रेन का है'। उन्होंने एक फोटो भी शेयर की।
माधवन का पोस्ट वायरल हो गया है और कई लोगों ने अलग-अलग राय कमेंट में दी हैं। कुछ लोगों ने कहा कि पहले भाषा थोपी गई, अब 'खाना भी थोपा' जा रहा है। एक यूज़र ने लिखा, 'हाँ, ये ध्यान देने वाली बात है। केंद्र सरकार या रेलवे ने इस पर ध्यान नहीं दिया। कैटरिंग वालों को खाना बनाना ही नहीं आता, चाहे उत्तर भारतीय हो या दक्षिण भारतीय। अगर आपको बहुत ही घटिया खाना खाना है तो रेलवे में जाइए'।