पाकिस्तान की धमकियों से भारत बेखौफ, सिंधु जल समझौते पर अड़ा. जल शक्ति मंत्री ने दिया दो टूक जवाब, 'पानी कहीं नहीं जा रहा, बातचीत नहीं होगी'.
नई दिल्ली: केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने सिंधु जल समझौते (IWT) पर भारत के सख्त रुख को दोहराते हुए गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान की खोखली धमकियों से भारत नहीं डरता. पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने धमकी दी थी कि अगर भारत सिंधु नदी जल समझौते पर फिर से बातचीत करने से इनकार करता है, तो युद्ध अपरिहार्य हो जाएगा.
इसका करारा जवाब देते हुए जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने कहा, "पानी कहीं नहीं जा रहा है. समझौते पर दोबारा बातचीत नहीं होगी. बिलावल भुट्टो क्या कहते हैं, वो उनकी मर्ज़ी. उनकी अपनी घरेलू राजनीति है."
मीडिया से बात करते हुए, पाटिल ने कहा कि बिलावल भुट्टो ने पहले भी धमकी दी थी कि अगर IWT रद्द किया गया तो सिंधु नदी में खून बहेगा. “हम इन गीदड़ भभकियों से डरते नहीं हैं (हम इन खोखली धमकियों से नहीं डरते),”.
मंत्री ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने कई बार भारत को समझौते पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए पत्र लिखा है. “सिंधु जल समझौते को रद्द करने के बारे में पाकिस्तान का पत्र लिखना एक औपचारिकता है और इससे इस मुद्दे पर भारत का रुख नहीं बदलेगा,”.
मंत्री ने माना कि भारत सिंधु नदी की पश्चिमी सहायक नदियों के पानी का इस्तेमाल करने पर काम कर रहा है, लेकिन उन्होंने परियोजना का विवरण नहीं बताया. उन्होंने कहा, "कुछ जवाब अपने समय पर दिए जाने पर अच्छे लगते हैं, लेकिन जो होगा वो हमारे लिए अच्छा ही होगा." उन्होंने कहा कि अभी परियोजना का विवरण बताना राष्ट्रीय हित में नहीं है. उन्होंने कहा, "यह फैसला भारत सरकार और प्रधानमंत्री का है... समझौते को रद्द करने के फैसले पर कोई नया अपडेट नहीं है. कोई भी फैसला देश हित में ही होगा।"
पाटिल ने तर्क दिया कि लंबे समय से लंबित तीस्ता जल-बंटवारे समझौते में किसी भी प्रगति के लिए बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता महत्वपूर्ण है. "जब वहां स्थिति स्थिर होगी, तभी हम आगे बढ़ पाएंगे," उन्होंने कहा. पाटिल की यह टिप्पणी तीस्ता समझौते के रुकने के बीच आई है, जो एक दशक से भी अधिक समय से दोनों पड़ोसी देशों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है.
जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान इस समझौते के लिए एक व्यापक रूपरेखा पर सहमति हुई थी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध ने इसे अंतिम रूप देने से रोक दिया था.