पाकिस्तानी गोले बॉर्डर के गांवों में बिना फटे पड़े हैं, जिससे लोगों की वापसी में देरी हो रही है। सुरक्षा बल इन खामोश हत्यारों को निष्क्रिय करने में जुटे हैं, लेकिन घर लौटने वालों के लिए ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करने की चुनौती है।
धनेश रवीन्द्रन की रिपोर्ट। बॉर्डर पर शांति है। लेकिन, बॉर्डर के इलाकों में एक और मुसीबत खड़ी हो रही है। ना फटे पाकिस्तानी गोले। एक-दो नहीं, लगभग 20 गांवों में पाकिस्तानी गोले बिना फटे पड़े हैं। सुरक्षा बल इन्हें ढूंढकर निष्क्रिय कर रहे हैं। इसके बाद ही लोग गांवों में लौट पाएंगे। नहीं तो, गांवों में ये गोले खामोश हत्यारे बनकर पड़े रहेंगे।
बारामूला, कुपवाड़ा जिलों के बॉर्डर के गांवों में सुरक्षा बलों ने कार्रवाई तेज कर दी है। उड़ी के छह गांवों में सेना ने विस्फोटक निष्क्रिय कर दिए हैं। इन गांवों में लोगों को वापस जाने का निर्देश दिया गया है। कुपवाड़ा में कर्ण सेक्टर में तलाशी जारी है। जल्द ही इन गांवों के लोग भी अपने घरों को... पता नहीं, अब वो कैसे होंगे। वापस जाने का निर्देश मिलते ही अगली चिंता शुरू हो जाएगी। कल तक जहां सोते थे, उस घर का क्या हाल होगा? क्या वो वैसे ही होगा? या... बस मलबा?
घरों की ओर...
कुपवाड़ा के बॉर्डर इलाके तंगधार के लोग सुरक्षा बलों के निर्देश पर गांवों में लौट आए। कुपवाड़ा के सुरक्षा केंद्र से लगभग 25 बसों में ग्रामीण वापस गए। गांव लौटने वालों के लिए जिला प्रशासन ने सारी सुविधाएं मुहैया कराईं। कई लोगों के पास तो बस अपने कपड़े ही थे। दशकों से जहां वो रहते थे, वो घर मलबे में तब्दील हो गए थे।
जिनके घर तबाह हो गए, उनके लिए सुरक्षा बलों ने उनके घरों के पास अस्थायी शेड बनाए हैं। परिवार वहीं रहेंगे। अधिकारियों के मुताबिक, जल्द ही राज्य सरकार की मदद से घरों का निर्माण फिर से शुरू होगा।
(कैंपों में रह रहे बॉर्डर के गांवों के बच्चे)
नींद उड़ा देने वाला डर
गोलाबारी तेज होने पर जान बचाने के लिए बंकरों में छिपना पड़ा। तंगधार के ग्रामीणों ने बताया कि वहां से उन्होंने अपने घरों को जलते हुए देखा। कर्ण सेक्टर के लोगों को गांवों में नहीं लौटने दिया जाएगा। जिला प्रशासन ने बताया कि सेना का पूरा नियंत्रण होने के बाद ही ग्रामीणों को जाने दिया जाएगा।
डरे हुए बच्चे
उड़ी में पाकिस्तान की गोलाबारी ने बॉर्डर के गांवों के बच्चों को ज़िंदगी भर का डर दे दिया है। गोलाबारी की आवाज़ से नींद हराम हो गई। रिश्तेदारों के घरों, सुरक्षा केंद्रों में डर के साये में गुज़रे दिन...
कल तक जहां वो स्कूल से भागकर आते थे, वो घर अब नहीं रहा। खिलौने, किताबें सब जलकर खाक हो गए। अस्थायी कैंप में रह रहे इन बच्चों को नहीं पता कि कब वो अपने गांव लौट पाएंगे।
(फैजान और उसकी बहन)
फैजान
फैजान होशियार बच्चा है। उड़ी के सरकारी स्कूल में सातवीं कक्षा का छात्र। अच्छा गाना गाता है। स्कूल में भी अव्वल। बारामूला के डिग्री कॉलेज के अस्थायी कैंप में पहली बार उसे देखा। कैंप के कई बच्चों का वो लीडर है। उड़ी में गोलाबारी से फैजान का घर भी क्षतिग्रस्त हो गया। गोलीबारी की आवाज़ सुनकर डर के मारे वो अपनी मां से लिपट गया। अभी वो उस डर से उबर ही रहा है। 12 साल का ये बच्चा जब पूछता है कि हमने क्या गलती की है, तो कोई जवाब नहीं होता। ये बच्चा हमें याद दिलाता है कि बॉर्डर पर रहने वालों को बस शांति चाहिए।
उड़ी और आसपास के इलाकों से महिलाओं और बच्चों समेत हज़ार से ज़्यादा लोग बारामूला के अलग-अलग कैंपों में रह रहे हैं। उस रात उन्होंने बस गोलीबारी और चीख-पुकार सुनी। बच्चों को लेकर उन्हें बंकरों में रात भर जागना पड़ा। 11वीं कक्षा की छात्रा नसरीन ने बताया कि कैसे वो अपना सबकुछ छोड़कर, जो भी मिला लेकर, अपनी बहनों को साथ लेकर गांव से भागी।
कैंप में रह रहे लोगों से जब पूछा जाता है कि कब लौटेंगे, तो उनके पास कोई जवाब नहीं। खाली हाथ, सबकुछ गंवाकर वापस जाना... बस मलबा ही तो बचा है। एक बार फिर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करने की मजबूरी। अब गांव पहुंचकर हर कदम फूंक-फूंककर रखना होगा, कम से कम कुछ समय के लिए तो। रात की गोलाबारी के बाद बचे हुए गोले खामोश मौत बनकर पड़े होंगे। बस एक ही सुकून है कि सुरक्षा बल हर गांव की बारीकी से तलाशी ले रहे हैं।