Premanand Ji Maharaj: पति को सही मार्ग पर चलाने की जिम्मेदारी पत्नी की होती है। प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि अगर पति भक्ति मार्ग पर नहीं चलता है, तो फिर पत्नी को खुद नाम जप करके उसे दे देना चाहिए। जिससे उसका बुद्धि बदल जाएगा। 

Premanand Ji Maharaj On Relationship: कहते हैं कि पत्नी अपने पति के शरीर का आधा हिस्सा होती है। इसलिए उसे अर्धांगिनी कहा जाता है। घर-गृहस्थी तभी खुशहाल होती है, जब दोनों के कदम एक ही तरफ बढ़ें। अगर दोनों की सोच में मतभेद हो तो फिर कलह आए दिन सुनने को मिलता है। ऐसी ही एक महिला अपने दुख को लेकर प्रेमानंद जी के पास पहुंची। उसने बताया कि वो चाहती है कि उसका पति भी भगवत मार्ग पर चलें। लेकिन वो उसकी नहीं सुनता है। आइए जानते हैं, वृंदावन के महाराज जी ने क्या बताया।

प्रश्न- महाराज जी, मैं चाहती हूं कि मेरे पति भगवत मार्ग पर चलें। जब वो टीवी देखते हैं, मोबाइल चलाते हैं, तो मैं उसने भजन करने को बोलती हूं, नाम जपने के लिए बोलती हूं, तो वो नाराज भी हो जाते हैं, गुस्सा भी करते हैं। लेकिन फिर भी मैं बार-बार उन्हें प्रेरित करती रहती हूं। क्या मैं गलत तो नहीं हूं?

पति को दें अपने नाम जप का हिस्सा

प्रेमानंद जी महाराज का जवाब- आपका कार्य कहना ठीक हैं, लेकिन जब हम देख लें, हमारे कहने से परिवर्तन नहीं हो रहा है, तो हमें दूसरा प्रयोग करना चाहिए। आप नाम जप करके उन्हें दे देना चाहिए। तो वो नाम जाकर उनकी बुद्धि का परिवर्तन करेगा। खुद नाम जप करो और अपने पति को प्रदान करों। तो वो उन्हें निश्चित रूप से बदल जाएगा। वो धीरे-धीरे भक्ति मार्ग पर चलने लगेगा।

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Frequently Asked Questions

क्या पत्नी की पूजा पाठ का फल पति को मिलता है ?

हिंदू धर्म में पत्नी की पूजा पाठ का फल पति को मिलने की मान्यता है। मनुस्मृति में कहा गया है कि पत्नी की पूजा से पति को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते हैं। वहीं महाभारत में बताया गया है कि पत्नी की पूजा से पति को सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक शांति मिलती है।

हिंदू धर्म में पत्नी की पूजा पाठ का महत्व

हिंदू धर्म में पत्नी की पूजा को बहुत महत्व दिया गया हैं। घर में सुख-शांति का वास उनके पूजा पाठ से आता है और पति समेत बच्चों को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते हैं।

क्या पत्नी की पूजा पाठ का फल पति को मिलता है

प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि यदि पत्नी भक्ति कर रही है तो उसका पुण्य केवल उसे ही प्राप्त होगा। जो भी पूजा करता है, उसका फल उस व्यक्ति को ही मिलता है। लेकिन पत्नी अगर चाहे तो वह अपने पुण्य को अपने पति को दे सकती है लेकिन यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है।

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