सार

Monogamy Vs polygamy: सदियों से हमें यहीं सिखाया गया है कि अगर रिश्ता खूबसूरत और स्थिर चाहिए तो मोनोगैमी (एक साथी के साथ रिश्ते) को ही अपनाना चाहिए। लेकिन अब एक नई स्टडी ने इस धारणा को सीधी चुनौती दी है।

 

Monogamy Vs polygamy: हमारे यहां पर पति-पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का माना जाता है। सदियों से यह सिखाया जाता रहा है कि अगर रिश्ता सुखद, स्थिर और हेल्दी चाहिए तो मोनोगैमी (एक साथी के साथ रिश्ते) को ही अपनाना चाहिए। यह बात हमारे समाज, धर्म और हेल्थ गाइडलाइंस में इतनी बार दोहराई गई है कि यह लगभग एक सच बन चुकी है, बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के। लेकिन अब एक नई स्टडी ने इस धारणा को सीधी चुनौती दी है।

नई रिसर्च में क्या सामने आया?

La Trobe University के जोएल आर. एंडरसन की ओर से की गई इस हालिया स्टडी के मुताबिक, मोनोगैमी और सहमति-आधारित पोलिगैमी (जहां सभी साथी आपसी सहमति से एक से अधिक रिश्ते निभाते हैं) के बीच खुशी और यौन संतुष्टि के लेबल में कोई खास अंतर नहीं पाया गया। यह स्टडी The Journal of Sex Research में प्रकाशित हुई है और इसे लगभग 25,000 लोगों पर किया गया, जो कि अब तक इस विषय पर की गई सबसे बड़ी स्टडी मानी जा रही है।

मोनोगैमी एक मोरल ऑप्शन या फिर सोशल प्रेशर?

स्टडी के अनुसार, मोनोगैमी को दशकों से नैतिक और सही ऑप्शन के रूप में पेश किया गया है। धार्मिक मान्यताओं, फैमिली परंपराओं और हेल्थ केयर के सलहा के जरिए यह बताया गया कि मोनोगैमी रिश्तों को स्थिर बनाता है। शरीर बीमारी से दूर रहता है। यौन संबंधों में बैलेंस और नजदीकी बढ़ती है।

लेकिन इस नई स्टडी ने बताया कि इन बातों का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। स्टडी में शामिल हुए लोगों में मोनोगैमी, पोलिगैमी और ओपन रिलेशनशिप स्विंगिंग और मोनोगैमिश (मुख्य रूप से मोनोगैमस, लेकिन सीमित छूट के साथ)थे। इन पर जब स्टडी की गई तो सभी ग्रुप में खुशी, आत्म संतुष्टि और यौन संतोष का लेबल करीब समान पाया गया।

पोलिगैमी के फायदे भी सामने आए

स्टडी ने यह भी बताया कि सहमति-आधारित पोलिगैमस रिश्तों में कुछ खास इमोशनल और कम्युनिकेशन स्किल्स बेहतर डेवलप होते हैं। जैसे पारदर्शिता, बातचीत का आर्ट, सहनशीलता और समझ। यानी कि अगर रिश्ते आपसी सहमति, ईमानदारी और पारस्परिक सम्मान पर आधारित हों, तो उनका ढांचा चाहे जैसा भी हो वे हेल्दी हो सकते हैं।

स्टडी की सीमाएं क्या थीं?

इस स्टडी में ज़्यादातर लोग अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे पश्चिमी देशों से थे और इनमें प्रमुख रूप से श्वेत लोगों की भागीदारी रही। ऐसे में भारत या अन्य सांस्कृतिक रूप से अलग समाजों में इन नतीजों को ज्यों का त्यों लागू करना शायद उचित न हो, लेकिन यह बहस जरूर छेड़ता है।