सार
Gautami Kapoor: आज की डिजिटल दुनिया में पेरेंटिंग आसान नहीं रही, खासकर जब बात यौन शिक्षा और सेल्फ एक्सप्लोरेशन जैसे सब्जेक्ट पर बच्चों से बातचीत की हो।
Gautami Kapoor Parenting Tips: राम कपूर की पत्नी और टीवी एक्ट्रेस गौतमी कपूर ने हाल ही में अपनी बेटी सिया के साथ किए गए एक अनोखे बातचीत को साझा किया। जिसने पैरेंट्स को सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने बताया कि जब उनकी बेटी 16 साल की हुई, तो वे सोच रही थीं कि उसे क्या गिफ्ट दिया जाए। तभी मन में एक ख्याल आया कि क्या मैं उसे एक सेक्स टॉय या वाइब्रेटर गिफ्ट करूं?' हैरानी होगी ये जानकर कि गौतमी ने इस बात का जिक्र अपनी बेटी से भी किया।
गौतमी बताती हैं कि जब मैंने ये बात अपनी बेटी से की तो वह चौंक गई और बोली, 'मॉम, क्या आप पागल हो गई हैं?' इस पर गौतमी ने समझाया, 'सोचो, कितनी माएं इस तरह की बात करने की हिम्मत करती हैं? क्यों ना तुम एक्सपेरिमेंट करो।' उन्होंने आगे बताया कि जो मेरी मां ने मेरे साथ नहीं किया, वो मैं अपनी बेटी के साथ जरूर करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि वह जीवन के हर पहलू को समझे और जिए। कई महिलाएं बिना किसी यौन सुख के जीवन बिता देती हैं। ऐसा क्यों हो? आज उनकी बेटी 19 साल की है और वह इस बात की सराहना करती है कि उसकी मां ने उसके साथ इतनी खुलकर बात की।
यौन शिक्षा कब और कैसे शुरू करें?
सवाल है कि बच्चों के साथ यौन शिक्षा कब और कैसे शुरू करना चाहिए, ताकि उन्हें अजीब भी ना लगे और समझ भी सकें। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सेक्सुअल हेल्थ और इंटिमेसी पर बातचीत बचपन से ही शुरू की जा सकती है,उम्र के मुताबिक सही तरीके से। 3 से 6 साल की उम्र में बच्चों से शरीर की सीमाओं पर बात की जा सकती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़े बात puberty, consent, रिश्तों और सुरक्षित यौन बिहेवियर तक पहुंच सकती है।
हालांकि यौन शिक्षा पर बातचीत एक बार का विषय नहीं हैं, बल्कि इस पर बातचीत लगातार करनी चाहिए। जब माता-पिता खुलेपन और बिना शर्म के इन मुद्दों पर बात करते हैं, तो बच्चे आत्म-विश्वास के साथ सवाल पूछ पाते हैं और अपने शरीर को लेकर स्वस्थ समझ विकसित करते हैं।
पीढ़ियों से चले आ रहे टैबू को कैसे तोड़ें?
बच्चों के बातचीत के दौरान बैलेंस बनाना जरूरी है। ईमानदारी के साथ लेकिन मर्यादा के अंदर बात करें। माता-पिता उनसे खुलकर बातचीत कर सकते हैं, लेकिन बच्चों के निजता और स्वतंत्रता का भी सम्मान करें। अपने डिसिजन को उनपर थोपें नहीं, बल्कि एक ऐसा माहौल बनाएं जिसमें बच्चे खुद डिसिजन लेने में सुरक्षित महसूस करें।
समय के साथ-साथ पेरेंटिंग के तरीके भी बदल रहे हैं। बच्चों से खुले और मजबूत बातचीत ही उन्हें आत्मनिर्भर, इमोशनल रूप से स्ट्रांग और समझदार इंसान बनने में मदद कर सकते हैं। टैबू को तोड़ना आसान नहीं, लेकिन शुरूआत एक बातचीत से होती है।