नौतपा के 9 दिनों में सूर्य की तपिश पृथ्वी पर अपना प्रचंड रूप दिखाती है। यह सिर्फ गर्मी ही नहीं, बल्कि मानसून, कृषि और प्राकृतिक चक्र के लिए भी महत्वपूर्ण है।

नौतपा यानी हर साल गर्मी के चरम के वे 9 दिन, जब सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं और गर्मी अपना प्रचंड रूप ले लेती है। यह आमतौर पर 25 मई से 2 जून के बीच होता है, जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है। भले ही यह आम लोगों को सिर्फ तेज गर्मी का एहसास कराए, लेकिन प्राकृतिक नियमों और ऋतु चक्र के लिहाज़ से नौतपा का जलना बहुत आवश्यक और लाभकारी होता है। नौतपा सिर्फ धार्मिक या ज्योतिषीय परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और प्राकृतिक दृष्टि से एक बेहद अहम समय है। इसका जलना प्राकृतिक चक्र की स्थिरता, मानसून की सफलता और पूरे वर्ष की कृषि उपज के लिए जरूरी है। इसलिए हर साल इसका होना प्रकृति की अनिवार्य प्रक्रिया का हिस्सा है।

हर साल क्यों जरूरी है नौतपा का जलना?

1. प्राकृतिक चक्र का संतुलन बनाए रखता है

  • नौतपा प्रकृति का वह अहम हिस्सा है जो मौसम परिवर्तन की भूमिका तय करता है।
  • यह गर्मी और वर्षा ऋतु के बीच का संक्रमण काल होता है, जिससे आगे चलकर अच्छी वर्षा सुनिश्चित होती है।

2. मानसून की तैयारी करता है

  • नौतपा के दौरान सूर्य की अत्यधिक तपन धरती की नमी को वाष्प में बदल देती है।
  • यह वाष्प ऊपरी वायुमंडल में जाकर बादलों के बनने में मदद करता है।
  • अगर नौतपा ठीक से ना जले, तो बादलों में जरूरी नमी नहीं बनती और मानसून कमजोर हो सकता है।

3. जल स्रोतों की शुद्धता

  • अत्यधिक गर्मी झील, तालाब, कुएं जैसे जल स्रोतों में मौजूद जीवाणुओं और हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती है।
  • इससे मानसून में मिलने वाला पानी अधिक स्वच्छ और पीने योग्य होता है।

4.पृथ्वी की ऊष्मा संतुलन में रहती है

नौतपा की गर्मी धरती से अतिरिक्त नमी को खींचती है, जिससे मौसम का संतुलन बना रहता है। इससे वातावरण में जरूरत से ज्यादा आर्द्रता नहीं रहती, जो अन्यथा कई बीमारियों को जन्म दे सकती है।

5. कीट-पतंगों की संख्या नियंत्रित होती है

  • तेज गर्मी कई तरह के हानिकारक कीटों और रोगजनक जीवों को नष्ट कर देती है।
  • यह इंसान और खेती दोनों के लिए लाभदायक होता है।

6. बीजों और फसलों के लिए लाभदायक

  • नौतपा के बाद मानसून आता है, इसलिए नौतपा के दौरान मिट्टी की ऊष्मा बीज अंकुरण के लिए आदर्श स्थिति बनाती है। 
  • इससे खरीफ की फसल जैसे धान, मक्का आदि के लिए सही वातावरण तैयार होता है।

अगर नौतपा न जले तो क्या होगा?

प्रभाव नुकसान

  • मानसून- कमजोर या अनिश्चित हो सकता है
  • खेती- फसल बर्बाद, बीज अंकुरण प्रभावित
  • जल स्रोत- दूषित जल, जलजनित रोगों का खतरा
  • कीट- मच्छर, बैक्टीरिया, कीड़े बढ़ सकते हैं
  • पर्यावरण- असंतुलन, अप्रत्याशित मौसम बदलाव
  • स्वास्थ्य- बुखार, संक्रमण, मौसमी बीमारियों में ग्रोथ