सार
तेलुगु फिल्मों के जाने-माने स्टार, जन सेना पार्टी के अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश की राजनीति के एक बड़े चेहरे, पवन कल्याण ने अपने मुश्किल दौर, खासकर डिप्रेशन और तनाव से निपटने का अपना अनोखा तरीका बताया है। हाल ही में दिल्ली में आंध्र प्रदेश के नए NDA सांसदों की बैठक में उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि वो कैसे मानसिक मज़बूती पाते हैं।
"भूख लगने दो, ज़मीन से जुड़ो":
पवन कल्याण ने बताया कि जब उन्हें बहुत ज़्यादा तनाव या डिप्रेशन होता है, तो वो जानबूझकर खाना छोड़ देते हैं और खेत में जाकर खेती-बाड़ी का काम करते हैं। "जब मुझे डिप्रेशन होता है, तो मैं खाना बंद कर देता हूँ। एक या डेढ़ दिन तक उपवास करता हूँ। खेत में जाता हूँ, मिट्टी से जुड़ता हूँ, खेती करता हूँ। जब मुझे भूख लगती है, तो मुझे अन्न की कीमत समझ आती है, ज़िंदगी की ज़रूरी चीज़ों का महत्व पता चलता है," उन्होंने कहा।
ये शारीरिक मेहनत और प्रकृति से जुड़ाव उन्हें वापस ज़मीन से जोड़ता है और उनके मन का बोझ कम करता है। भूख का एहसास उन्हें ज़िंदगी की छोटी-छोटी चीज़ों के लिए आभारी बनाता है और बड़ी लगने वाली परेशानियाँ छोटी लगने लगती हैं।
पुराने संघर्षों की याद:
पवन कल्याण ने माना कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में कई बार डिप्रेशन का सामना करना पड़ा है। उन्होंने बताया कि इंटरमीडिएट (12वीं) की परीक्षा में फेल होने पर उनके मन में आत्महत्या के ख्याल भी आए थे। 2019 के चुनाव में उनकी पार्टी की हार के बाद भी वो मानसिक रूप से टूट गए थे। लेकिन हर बार उन्होंने अपने इसी तरीके से खुद को संभाला और मानसिक रूप से मज़बूत बने।
राजनीतिक मौका और संदेश:
हाल ही में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में NDA गठबंधन का हिस्सा बनकर जन सेना पार्टी ने आंध्र प्रदेश में अच्छी कामयाबी हासिल की। इसके बाद पवन कल्याण नए सांसदों को संबोधित कर रहे थे। ऐसे में अपने निजी संघर्षों को साझा करना खास था।
एक मशहूर शख्सियत और नेता का अपने मानसिक कमज़ोरियों और उनसे निपटने के तरीकों को सार्वजनिक रूप से बताना कई लोगों को प्रेरणा दे सकता है। उनकी ये बातें मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत और मुश्किल समय में हिम्मत न हारने और अपना रास्ता खुद ढूँढने की ज़रूरत पर ज़ोर देती हैं। खेती, प्रकृति और सादगी से जुड़ाव कैसे मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है, ये उनकी बातों से पता चलता है।
कुल मिलाकर, पवन कल्याण की ये बातें सिर्फ़ एक राजनीतिक भाषण नहीं, बल्कि ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करने में मानसिक मज़बूती, आत्म-विश्लेषण और प्रकृति से जुड़ाव के महत्व को बताने वाला एक निजी अनुभव था।