सार

स्मिता पाटिल ने 'नमक हलाल' के एक गाने की शूटिंग के बाद क्यों रोया? क्या था उस गाने में ऐसा जिससे उन्हें शर्मिंदगी हुई? जानिए इस अनसुने किस्से के पीछे की पूरी कहानी।

'नमक हलाल' फिल्म के उस गाने की शूटिंग के बाद स्मिता पाटिल क्यों रोईं थीं? अमिताभ के साथ वाली उस फिल्म को लेकर उन्हें शर्मिंदगी क्यों हुई थी? लीजिए, इस राज़ का जवाब ...

बॉलीवुड के इतिहास में अपनी गंभीर और कलात्मक एक्टिंग के लिए मशहूर स्मिता पाटिल ने सिर्फ़ आर्ट फ़िल्में ही नहीं, बल्कि कुछ कामयाब कमर्शियल फ़िल्में भी कीं। ऐसी ही एक अहम फिल्म थी 1982 में रिलीज़ हुई 'नमक हलाल'। इस फिल्म में उन्होंने बॉलीवुड के 'बिग बी' अमिताभ बच्चन के साथ लीड रोल किया था।

फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही और इसके गाने आज भी पॉपुलर हैं। लेकिन, इस कामयाबी के बावजूद, स्मिता पाटिल इस फिल्म के एक खास गाने को लेकर बहुत शर्मिंदा और नाखुश थीं, ऐसा कहा जाता है।

'आज रपट जाये तो' गाना और स्मिता का रोना
'नमक हलाल' के सबसे पॉपुलर गानों में से एक 'आज रपट जाये तो हमें ना उठैयो' की शूटिंग स्मिता पाटिल के लिए बहुत मुश्किल थी। इस गाने में उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ बारिश में भीगते हुए रोमांटिक सीन करने थे। ये गाना आज भी हिट है, लेकिन शूटिंग के बाद स्मिता पाटिल बहुत दुखी होकर रोईं थीं, ऐसा कहा जाता है।

जानकारों के मुताबिक, स्मिता पाटिल ज़्यादातर गंभीर और रियलिस्टिक किरदार निभाती थीं। उन्हें आर्ट और पैरेलल सिनेमा ज़्यादा पसंद था। 'नमक हलाल' जैसी पूरी तरह कमर्शियल फिल्म में, वो भी बारिश में रोमांटिक गाने पर डांस करना उनके कलात्मक नज़रिए के खिलाफ था। उन्हें लगा कि इस गाने के सीन बहुत ही 'छिछोरे' हैं और सिर्फ़ दर्शकों को लुभाने के लिए बनाए गए हैं। उन्हें लगा कि ये उनके सीरियस एक्ट्रेस वाली इमेज के लिए ठीक नहीं है और ऐसे सीन्स में काम करना उनके लिए शर्मनाक है। शूटिंग खत्म होने के बाद वो अपने कमरे में जाकर रोईं थीं।

अमिताभ बच्चन का दिलासा
स्मिता पाटिल को रोते देखकर अमिताभ बच्चन ने उन्हें समझाने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि ये सिर्फ़ फिल्म का एक हिस्सा है, कमर्शियल सिनेमा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे गाने और सीन ज़रूरी होते हैं। ये सिर्फ़ एक्टिंग है, इसे पर्सनली लेने की ज़रूरत नहीं है और फिल्म की कामयाबी के लिए ये अहम है। अमिताभ की बातों से स्मिता थोड़ा शांत हुईं, लेकिन उनके मन में उस गाने को लेकर नाखुशी बनी रही, ऐसा कहा जाता है।

बायोग्राफी में ज़िक्र
इस वाकये का ज़िक्र लेखिका मैथिली राव की किताब "स्मिता पाटिल: ए ब्रीफ इनकैंडेसेंस" में भी है। स्मिता ने कमर्शियल सिनेमा में ढलने की कोशिश की, लेकिन कई बार इसकी माँगें उनके कलात्मक मन को ठेस पहुँचाती थीं, इसकी ये एक मिसाल है।

कुल मिलाकर, 'नमक हलाल' भले ही सुपरहिट रही हो और स्मिता पाटिल के करियर में एक अहम कमर्शियल फिल्म के तौर पर जानी जाती हो, लेकिन इसके एक पॉपुलर गाने की शूटिंग का तजुर्बा उनके लिए निजी तौर पर दुख और शर्मिंदगी लेकर आया था। ये कला और कमर्शियल कामयाबी के बीच कलाकारों के संघर्ष को दिखाता है। क्या ये बात तब भी थी, आज भी है, और हमेशा रहेगी?