सार

US sanctions on ICC अमेरिका ने इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके वैश्विक प्रभाव से दुनिया के कई देश परेशान हैं।

US sanctions on ICC: युद्ध के दौरान निर्दोषों पर या मानवता के अपराधों पर फैसला सुनाने के लिए स्थापित इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट पर अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजरें टेढ़ी हो गई हैं। ट्रंप प्रशासन ने अब आईसीसी पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है। अमेरिकी फैसले से दुनिया के तमाम मानवाधिकार संगठन व कार्यकर्ता ही नहीं विभिन्न देशों को झटका लगा है। दरअसल, ट्रंप, गाजा में कथित इजरायली युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों की आईसीसी जांच से नाराज थे।

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट पर बैन का क्या प्रभाव पड़ेगा?

आईसीसी पर अमेरिकी प्रतिबंध का काफी व्यापक असर पड़ेगा। यह बात दीगर है कि इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के 125 मेंबर्स में यूएसए या इजरायल के सदस्य नहीं हैं। लेकिन इस प्रतिबंध का ग्लोबल प्रभाव पड़ेगा। अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से आईसीसी अधिकारियों का अमेरिका विजिट बैन रहेगा। इससे उनके काम में बाधा पहुंचेगी। कई संस्थाएं जो इसे फंड करती हैं वह अमेरिकी डर से काम करने से हाथ खड़े कर सकते हैं। कोर्ट पर प्रतिबंध लगने से उनके टेक्निकल सपोर्ट या आईटी ऑपरेशन में दिक्कत आएगी ही साथ ही विवेचना में भी तकनीकी तौर पर बाधा पहुंचेगी।

जवाब में कोर्ट क्या कर सकती है? 

विशेषज्ञों की मानें तो इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट, अमेरिकी प्रतिबंध के आगे लाचार साबित होगा। यह इसलिए क्योंकि कोर्ट के तमाम स्टेकहोल्डर्स अमेरिका से जुड़े हुए हैं और वे किसी भी सूरत में ट्रंप प्रशासन की नाराजगी झेलने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि, आईसीसी के पास पॉवर है कि वह उसकी काम में बाधा पहुंचाने या उसे धमकी देने या प्रतिशोध में काम करने वाले के खिलाफ कार्रवाई कर सके लेकिन अमेरिका से पंगा लेना आईसीसी को भारी पड़ सकता है इसलिए वह ऐसा कोई कदम उठाएगा नहीं और अगर करेगा तो इसके लिए 100 बार कम से कम सोचेगा।

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इसके क्या परिणाम हैं?

विशेषज्ञों को डर है कि आईसीसी को कमजोर करने से, जो युद्ध अपराधों, मानवता के खिलाफ अपराधों, नरसंहार और आक्रामकता के अपराध की जांच करता है, दुनिया भर में तानाशाहों को खुली छूट मिल सकती है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल की महासचिव एग्नेस कैलामर्ड ने कहा: प्रतिबंध उस चीज को कमजोर करने और नष्ट करने की कोशिश करते हैं जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने दशकों से सबके लिए बनाया है। ग्लोबल नियम जो सभी पर लागू होते हैं और सभी के लिए न्याय प्रदान करना चाहते हैं। कैलामर्ड का मानना है कि यदि प्रतिबंध प्रभावी होगा तो अफगानिस्तान, यूक्रेन और सूडान जैसे हॉटस्पॉट में कथित अपराधों की जांच भी प्रभावित होगी। पीड़ितों को उन मामलों में भी कार्यवाही से वंचित कर दिया जाएगा जिनसे अमेरिका नाखुश नहीं है। यह सभी जांचों को कमजोर करेगा, न कि केवल फिलिस्तीन की स्थिति की जांच को।

क्या ऐसा पहले कभी हुआ है?

2020 में ट्रंप के तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य कर्मियों की युद्ध अपराध जांच को लेकर उस समय के आईसीसी अभियोजक फतौ बेन्सौदा पर प्रतिबंध लगाए थे। पोम्पिओ ने उस समय आईसीसी को कंगारू कोर्ट कहा था। लेकिन जो बिडेन ने एक साल बाद इन प्रतिबंधों को रद्द कर दिया।

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