सार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को वापस निकालने का आदेश दिया। यह समझौता ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए बनाया गया था।

वर्ल्ड डेस्क। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकालने के आदेश पर साइन किया। पेरिस समझौता एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन संधि है। इसके तहत 200 देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई है।

पेरिस समझौता क्या है?

पेरिस समझौता 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन में हुआ था। इस शिखर सम्मेलन में 190 से अधिक देश एकत्रित हुए थे। समझौता में दुनियाभर में तापमान में होने वाली वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस या कम से कम 1.5 डिग्री तक सीमित रखने की बात की गई थी।

देशों के बीच इस बात पर आम सहमति नहीं बन पाई कि टारगेट 1.5 डिग्री रखा जाए या 2 डिग्री। जलवायु वैज्ञानिकों ने निचली सीमा तय करने का आग्रह किया था। इसे समझौते के लक्ष्य के बजाय आदर्श के रूप में जोड़ा गया।

2015 से जलवायु परिवर्तन में तेजी आई है। धरती इतनी तेजी से गर्म हो रही है कि वैज्ञानिकों ने भी इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी। हाल के वर्षों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि अगर धरती का तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा बढ़ता है तो प्रकृति और मानवता की ग्लोबल वार्मिंग के अनुकूल होने की क्षमता में काफी कमी आएगी।

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दुनिया के करीब 200 देशों द्वारा पेरिस समझौते को अपनाना एक ऐतिहासिक क्षण था, लेकिन इसमें इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई कि ये देश ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लक्ष्य को कैसे हासिल करेंगे। यह समझौता बाध्यकारी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत देशों पर जलवायु प्रदूषण कम करने का कोई दायित्व नहीं है। देश अपने प्रदूषण लक्ष्य और उन्हें पूरा करने के तरीके खुद तय करते हैं।

डोनाल्ड ने अमेरिका को क्यों पेरिस जलवायु समझौते से अलग किया?

डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से पेरिस समझौते के आलोचक रहे हैं। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने के लिए साइन किए थे। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस कदम को पलट दिया था। अब एक बार फिर ट्रंप ने अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से अलग कियाहै। उन्होंने कहा, "मैं अनुचित, एकतरफा पेरिस जलवायु समझौते से तुरंत हट रहा हूं।"

ट्रंप लंबे समय से जीवाश्म ईंधन (डीजल, पेट्रोल, कोयला) और फ्रैकिंग उद्योग के समर्थक रहे हैं। उन्होंने अमेरिका का पेट्रोलियम और गैस उत्पादन बढ़ाने का वादा किया है। इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। ये कदम पेरिस जलवायु समझौते के अनुरूप नहीं है। जिसके चलते ट्रंप ने उससे अमेरिका को अलग करने का फैसला किया है। अमेरिका वर्तमान में चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है। ट्रंप ने जलवायु समझौता से अलग होकर साफ कर दिया है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने को लेकर उनका स्टैंड क्या है। इससे ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई पर असर पड़ेगा।

क्या था अमेरिका का जलवायु लक्ष्य?

दिसंबर 2024 में बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका की ओर से एक नया महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा था। इसमें कहा गया कि अमेरिका 2035 तक जलवायु प्रदूषण को 2005 के स्तर से 66% तक कम कर देगा। बाइडेन के इस लक्ष्य की आलोचना भी हुई थी। कहा गया कि वह जानते हैं कि ट्रम्प सत्ता में आते हैं तो अमेरिका को पेरिस समझौता से अलग कर लेंगे। रोडियम के अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा और जलवायु अनुसंधान का नेतृत्व करने वाली केट लार्सन ने कहा, "2035 के लिए इस नए, बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए, हम सही रास्ते पर नहीं हैं। ट्रम्प प्रशासन के तहत हम और भी अधिक दूर हो सकते हैं।"

पेरिस समझौते के साथ क्या है अमेरिका का इतिहास?

पेरिस समझौते के लिए बातचीत में अमेरिका के प्रतिनिधि आगे थे। 2015 में ओबामा प्रशासन के दौरान इसे लगभग 200 देशों ने अपनाया था। ट्रम्प ने 2017 में अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकालने के अपने इरादे की घोषणा की थी। हालांकि इसे 4 नवंबर 2020 तक औपचारिक रूप नहीं दिया गया था। 2020 के चुनाव में जो बाइडेन को जीत मिली थी। अपने कार्यकाल के पहले दिन बाइडेन ने पेरिस समझौते में फिर से प्रवेश करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी।

20 जनवरी 2025 को ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन पेरिस समझौते से फिर से हटने का आदेश दिया। ट्रम्प जीवाश्म ईंधन (पेट्रोलियम और कोयला) के अमेरिकी उत्पादन को बढ़ाना चाहते हैं।

क्या अमेरिका पेरिस समझौते में फिर से प्रवेश कर सकता है?

हां, ऐसा हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ट्रम्प प्रशासन आगे क्या करता है। या अगले चुनाव में किसे जीत मिलती है।