सार

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के तहत महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक है। शिक्षा, काम, और यहां तक कि बातचीत करने जैसे बुनियादी अधिकार भी उनसे छीन लिए गए हैं। महिलाओं का जीवन दम घुटने जैसा हो गया है।

हम 2025 में आ गए हैं। एक तरफ़ भारत समेत कुछ देश तेज़ी से विकास की ओर बढ़ रहे हैं। सभी क्षेत्रों में महिलाएं आगे आ रही हैं। महिलाओं की ताकत बढ़ रही है। लेकिन कुछ देशों में महिलाओं को अब भी सही आज़ादी नहीं मिली है। सार्वजनिक रूप से सामने आना तो दूर, अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएं आपस में बात करने का अधिकार भी खो चुकी हैं। तालिबान शासन के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति बहुत गंभीर हो गई है। महिलाओं के हर अधिकार को तालिबान सरकार ने छीन लिया है।  

तालिबान शासन के बाद अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएं दम घुटकर जीने को मजबूर हैं। शिक्षा से लेकर बोलने तक, सभी अधिकार छीन लिए गए हैं। आज़ादी के बिना महिलाएं ज़िंदगी बिता रही हैं। हाई स्कूल के बाद लड़कियों को स्कूल जाने की इजाज़त नहीं है। लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा पूरी तरह से बंद कर दी गई है। इससे लड़कियों के शिक्षा और करियर के सपने टूट गए हैं।

महिलाओं को क्या काम करना चाहिए और क्या नहीं, इसके सख़्त नियम बना दिए गए हैं। पहले जो ब्यूटी पार्लर थे, उन्हें तालिबान सरकार ने बंद करवा दिया है। महिलाओं को पार्क और जिम जैसी सार्वजनिक जगहों पर जाने की मनाही है। सार्वजनिक जगहों पर उनकी भागीदारी सीमित कर दी गई है। उन्हें किसी भी गाने, नाचने या खेल में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं है। अक्टूबर 2024 में, तालिबान के मंत्रालय ने कहा कि महिलाएं आपस में बात नहीं कर सकतीं। नमाज़ के दौरान भी दूसरी महिलाओं से बात करना मना है। महिलाओं की आवाज़ को ऐसी चीज़ माना जाता है जिसे छुपाकर रखना चाहिए।   

2021 में सत्ता में आने के बाद, तालिबान सरकार इस्लामी कानून को सख़्ती से लागू कर रही है। साथ ही, महिलाओं के लिए कई नियम बनाए गए हैं। घर से बाहर निकलते समय महिलाओं को अपना चेहरा और शरीर ढकना ज़रूरी है। ज़ोर से बात करना मना है। यही नहीं, महिलाओं को बिना ज़रूरत घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है। सिर्फ़ ज़रूरी काम होने पर ही उन्हें बाहर जाने दिया जाता है। इन सबके अलावा, वहां के लोगों के लिए नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है। सार्वजनिक जगहों पर संगीत बजाना और गैर-मुस्लिम त्योहार मनाना भी मना है। क़ानून तोड़ने पर जुर्माना या क़ैद की सज़ा हो सकती है।

पहले अफ़ग़ान महिलाओं को नर्सिंग करने की इजाज़त थी। पुरुष महिलाओं का इलाज नहीं कर सकते थे, इसलिए नर्सिंग के क्षेत्र में लड़कियां काम करती थीं। लेकिन अब महिला नर्सों की संख्या बहुत कम हो गई है। इससे महिलाओं को इलाज करवाने में मुश्किल हो रही है। इन कोर्सों में 17,000 महिलाएं ट्रेनिंग लेती थीं। लेकिन अब महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा बंद होने से वे इस शिक्षा से भी वंचित हो गई हैं। महिलाओं पर हो रहे इस अत्याचार का विरोध करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की जाती है। उन्हें गैरकानूनी गिरफ़्तारी और यातना जैसी भयानक सज़ाएं भुगतनी पड़ती हैं। हिजाब सही से न पहनने के आरोप में महिलाओं और लड़कियों को बड़े पैमाने पर गिरफ़्तार किया जा रहा है।