मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है, क्योंकि उनकी स्टिक पर गेंद ऐसे चिपक जाती थी, जैसे चुंबक हो। नीदरलैंड में तो एक बार उनकी स्टिक को ये सोचकर तोड़ा गया कि इसमें चुंबक है।
मेजर ध्यानचंद ने अपने हॉकी करियर में 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक खेलों में भारत को गोल्ड मेडल जिताया और हॉकी में भारत की बादशाहत की शुरुआत की।
मेजर ध्यानचंद ने 1926 से 1949 तक हॉकी खेला। उन्होंने अपने 22 साल के हॉकी करियर में 1000 से भी ज्यादा गोल किए। जिसमें 570 से ज्यादा केवल इंटरनेशनल गोल्स थे।
1936 ओलंपिक खेलों के फाइनल में गीला मैदान होने के कारण मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते उतार दिए और नंगे पैर खेल कर भारत को जर्मनी से 8-1 से जीत दिलाई।
मेजर ध्यानचंद को चांद कहकर बुलाया जाता था, क्योंकि वो ज्यादातर रात की चांदनी के नीचे प्रैक्टिस किया करते थे।
मेजर ध्यानचंद 16 साल की उम्र में ही ब्रिटिश इंडियन आर्मी में शामिल हुए और वही से हॉकी खेलना शुरू किया।
बेटन कप फाइनल मेजर ध्यानचंद का सबसे अच्छा मैच माना जाता है। 1933 में झांसी हीरोज का नाम कलकत्ता कस्टम्स के बीच खेले गए इस मैच में मेजर ध्यानचंद ने रिकॉर्ड्स की झड़ी लगा दी थी।
क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी डॉन ब्रैडमैन ने मेजर ध्यानचंद का खेल देखते हुए कहा था कि वो ऐसे गोल करते हैं, जैसे में रन बनाता हूं।
जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी ध्यानचंद के मुरीद हो गए थे। उनकी हॉकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें जर्मनी की नागरिकता और सेना में नौकरी तक देने पेशकश की, लेकिन ध्यानचंद ने मना कर दिया।
भारत का सबसे बड़ा खेल सम्मान मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार उनके नाम पर रखा गया। इसके अलावा उनकी जन्म तिथि 29 अगस्त के दिन नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है।