सार
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का मैनपुरी से अटूट रिश्ता रहा। ऐसे में उनके निधन के बाद मैनपुरी की विरासत को कौन संभालेगा, इसका सभी को इंतजार है। इस दौरान मैनपुरी की विरासत को संभालने के लिए 4 नामों पर चर्चा है।
मैनपुरी: मुलायम सिंह का मैनपुरी से और मैनपुरी का मुलायम से अनोखा रिश्ता रहा है। ये वह रिश्ता था जिसे नेताजी ने अपनी सियासी कर्मभूमि मैनपुरी से आखिरी सांस तक निभाया। वहीं नेताजी के निधन के बाद उब उनकी इस विरासत को कौन संभालेगा, इसका इंतजार लोगों के साथ-साथ खुद मैनपुरी को भी है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह के निधन के बाद से मैनपुरी लोकसभा सीट भी खाली हो गई। ऐसे में सभी लोगों की निगाहें इस सीट के उत्तराधिकारी पर टिकी हुई हैं। भले ही नेताजी का जन्म इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था। लेकिन उनकी कर्मभूमि हमेशा मैनपुरी ही रही। बता दें कि इसी मैनपुरी के करहल से मुलायम सिंह ने शिक्षा प्राप्त की और फिर शिक्षक के तौर पर यहां कार्य भी किया।
मैनपुरी से नेताजी का रहा अटूट रिश्ता
मुलायम सिंह यादव ने करहल के अखाड़े में पहलवानी के दांव-पेंच भी सीखे। जब नेताजी ने मैनपुरी के सियासी अखाड़े में ताल ठोकी तो अच्छे-अच्छे सूरमाओं को धूल चटा दी। इस दौरान धरती पुत्र के नाम से फेमस हुए नेताजी और मैनपुरी, दोनों ने एक दूसरे को इस कदर अपनाया कि ये साथ मुलायम सिंह की आखिरी सांस पर ही जाकर खत्म हुआ। मैनपुरी में नेताजी की सियासत का अंदाया आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वर्ष 1989 से आज तक लोकसभा चुनाव में कोई भी मुलायम सिंह या उनके द्वारा चुने गए प्रत्याशी को शिकस्त नहीं दे सका। वर्ष 1996 में मैनपुरी से जीत हासिक करने के बाद मुलायम सिंह केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री बने थे। बता दें कि वर्ष 2019 में नेताजी ने खुद आखिरी बार यहां से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता था।
इन 4 नामों पर हो रही है चर्चा
वर्तमान में मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह सांसद थे। नेताजी द्वारा बनाई गई समाजवादी पार्टी को उनके बेटे अखिलेश यादव पहले ही संभाल चुके हैं। लेकिन मुलायम सिंह के बाद मैनपुरी की विरासत को कौन संभालेगा इसका इंतजार सभी को है। ऐसे में एक सवाल यह भी है कि जो भी मुलायम सिंह के बाद मैनपुरी की विरासत को संभालेगा, क्या वह नेताजी जैसा रिश्ता वहां की जनता से बना पाएगा। मैनपुरी में मुलायम सिंह की विरासत को संभालने के लिए चार चेहरों पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं। इसमें पहला स्थान उनके बेटे अखिलेश यादव का ही आता है। लेकिन अखिलेश यादव करहल सीट से विधायक हैं और सदन में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। ऐसे में अगर अखिलेश मैनपुरी की विरासत को संभालते हैं तो उन्हें इन दोनों पदों को छोड़ना पड़ेगा।
मुलायम सिंह के तिलिस्म को कोई नहीं तोड़ पाया
वहीं दूसरे नंबर पर मुलायम सिंह के भतीज धर्मेंद्र यादव भी उनकी विरासत को संभाल सकते हैं। धर्मेंद्र यादव वर्ष 2004 में नेताजी के सीट छोड़ने के बाद मैनपुरी से सांसद रहे थे। तीसरी स्थान पर मुलायम सिंह के पोते तेजप्रताप यादव आते हैं। वर्ष 2014 में तेजप्रताप भी मैनपुरी सीट से सांसद रह चुके हैं। वहीं चौथे नंबर पर इस सूची में नेताजी की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव का नाम भी शामिल है। मैनपुरी लोकसभा सीट से प्रत्याशी कोई भी रहा हो लेकिन उसे जिताने के लिए मुलायम सिंह का एक इशारा ही काफी था। वर्ष 1989 से अब तक कुल 11 लोकसभा चुनाव हुए हैं। जिसमें आज तक नेताजी या उनके द्वारा चुने गए प्रत्याशी ने ही जीत हासिल की। कोई भी आज तक मुलायम सिंह द्वारा बनाए गए इस तिलिस्म को तोड़ नहीं पाया।