सार

IIT बॉम्बे के रिसर्चर्स ने एक नया सोलर सेल बनाया है जो पारंपरिक सोलर तकनीक से ज़्यादा कारगर है। इससे बिजली बिल कम होने और सौर ऊर्जा ज़्यादा सुलभ होने की उम्मीद है।

मुंबई: आजकल बिजली के बिल बढ़ना एक बड़ी चिंता बन गई है। गर्मी में AC, फ्रिज वगैरह बिजली की खपत बढ़ा देते हैं, तो सर्दियों में हीटर। इस समस्या का हल IIT बॉम्बे के रिसर्चर्स द्वारा विकसित की गई नई सोलर तकनीक से मिलने की उम्मीद है। 

सौर ऊर्जा तकनीक में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए, IIT बॉम्बे के रिसर्चर्स ने एक उच्च क्षमता वाला टैंडम सोलर सेल बनाया है। उनका दावा है कि यह पारंपरिक सोलर तकनीक से ज़्यादा कारगर है। IIT बॉम्बे के नेशनल सेंटर फॉर फोटोवोल्टेइक रिसर्च एंड एजुकेशन (NCPRE) के प्रोफेसर दिनेश काबरा और उनकी टीम ने इस नए सोलर सेल के विकास का नेतृत्व किया। यह एक 'टैंडम सोलर सेल' है जिसकी ऊपरी परत में हैलाइड पेरोव्स्काइट का इस्तेमाल किया गया है। रिसर्चर्स का कहना है कि यह कम रोशनी में भी ज़्यादा प्रकाश अवशोषित करता है।

इसकी निचली परत सिलिकॉन से बनी है, जो सोलर इंडस्ट्री में पहले से ही व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इससे ज़्यादा बिजली पैदा होती है। यह एक ऐसा आधुनिक सोलर सेल है जो पारंपरिक तकनीकों की तुलना में 25-30 प्रतिशत ज़्यादा बिजली पैदा कर सकता है। जहां आम सोलर पैनल सूरज की ऊर्जा का लगभग 20 प्रतिशत बिजली में बदलते हैं, वहीं यह नई तकनीक 30% तक दक्षता हासिल कर सकती है। इससे बिजली की कीमत कम हो जाती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2.5 रुपये से चार रुपये प्रति यूनिट की कीमत घटकर सिर्फ एक रुपये प्रति यूनिट हो सकती है।

कई सोलर तकनीकों के विपरीत, जो आयातित सामग्री पर निर्भर करती हैं, यह तकनीक पूरी तरह से भारत में बनी है। कच्चा माल देश में आसानी से उपलब्ध है। पहले, भारत को अपने ज़्यादातर सोलर पैनल की सामग्री विदेशों से, खासकर चीन से, आयात करनी पड़ती थी। पेरोव्स्काइट के इस्तेमाल में एक बड़ी रुकावट इसकी टिकाऊपन की समस्या थी। लेकिन IIT बॉम्बे की टीम ने अब इसकी उम्र 10 साल तक बढ़ा दी है। इसे सौर ऊर्जा तकनीक में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।

महाराष्ट्र सरकार और IIT बॉम्बे समर्थित स्टार्टअप ART-PV इंडिया प्राइवेट लिमिटेड दिसंबर 2027 तक नए सोलर सेल बाजार में लाने की योजना बना रहे हैं। सभी मशीनरी और निर्माण भारत में ही होगा। इस खोज के पीछे के वैज्ञानिक, प्रोफेसर दिनेश काबरा, स्टार्टअप का नेतृत्व करेंगे और इसके लॉन्च की देखरेख करेंगे।

यह तकनीक सिर्फ बड़े सोलर फार्म तक ही सीमित नहीं है। इसे घरों की छतों, इमारतों के आगे के हिस्से और गाड़ियों पर भी लगाया जा सकता है, जिससे सौर ऊर्जा ज़्यादा सुलभ और कारगर हो जाती है। इसके अलावा, रिपोर्ट्स के मुताबिक, IIT बॉम्बे और महाराष्ट्र सरकार का लक्ष्य भारत के दीर्घकालिक ऊर्जा लक्ष्यों के लिए स्वच्छ ईंधन, ग्रीन हाइड्रोजन, बनाने में इस प्रगति का इस्तेमाल करना है।