Banaras News : भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे, जिनका जन्म काशी में हुआ था। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सम्मेद शिखर पर ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह के चार व्रतों की शिक्षा दी।
वाराणसी: जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए। पहले तीर्थंकर के रूप में ऋषभदेव (आदिनाथ) और 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी जाने जाते है। सभी तीर्थंकरों ने जैन धर्म के सिद्धांतों को पालन करते हुए भारत ही नहीं विदेशों में इसका प्रचार प्रसार किया। जैन धर्म का विकास को लेकर एक तीर्थंकर को श्रेय नहीं दिया जा सकता है। सभी ने अपनी अपनी भूमिका निभाई है। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में चार की जन्म स्थली काशी है। आज 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान का जन्म जयंती है। तो आइए जानते हैं उनके बारे में…
कौन हैं भगवान पार्श्वनाथ
वाराणसी के भेलूपुर में भगवान पार्श्वनाथ का जन्म लगभग 3000 वर्ष पूर्व लगभग 872 ईसा पूर्व हुआ था। कल्पसूत्र के अनुसार, वे भगवान महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व, यानी 777 ई. पूर्व अवतरित हुए थे। भगवान पार्श्वनाथ को एक ऐतिहासिक व्यक्ति माना जाता है, जिन्होंने भगवान महावीर से पहले ही श्रमण परंपरा को आम जनता तक पहुंचाया और उसे एक विशिष्ट पहचान दी।
राज परिवार में जन्मे थे भगवान पार्श्वनाथ
भगवान पार्श्वनाथ के पिता काशी के राजा अश्वसेन थे और माता का नाम वामा देवी था। इस शाही पृष्ठभूमि के कारण, उनका प्रारंभिक जीवन एक राजकुमार के रूप में बीता। तीस वर्ष की आयु में, पार्श्वनाथजी ने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास ले लिया। उन्होंने पौष माह की कृष्ण एकादशी को दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने 83 दिन की कठोर तपस्या के बाद, 84वें दिन, उन्हें चैत्र कृष्ण चतुर्थी को सम्मेद पर्वत पर 'घातकी वृक्ष' के नीचे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ (सम्मेद शिखर)पर निर्माण प्राप्त हुआ।
चातुर्याम धर्म की शिक्षा दी
भगवान पार्श्वनाथ ने कैवल्य ज्ञान के बाद, चातुर्याम धर्म की शिक्षा दी, जिसमें चार प्रमुख व्रत शामिल थे।सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना), और अपरिग्रह शामिल है। पार्श्वनाथ ने ज्ञान प्राप्ति के बाद, उन्होंने सत्तर वर्षों तक अपने विचारों का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने चार गणों या संघों की स्थापना की। उनके गणधरों की संख्या 10 थी, जिनमें आर्यदत्त स्वामी उनके प्रथम गणधर थे।
जैन धर्म के चार पंत
भगवान पार्श्वनाथ जन्माष्टमी के कमेटी के महामंत्री राकेश जैन ने बताया कि सभी धर्म में अलग-अलग पंथ है। इसी तरह जैन धर्म में चार पंथ है। सबसे पुराना पंथ दिगंबर के पंत के लोग निर्वस्त्र रहते है, जबकि श्वेताम्बर समुदाय के लोग श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। राकेश जैन ने कहा कि दिगंबर पंथ के लोगों का मानना है कि दिगंबर अवस्था में शिशु का जन्म होता है। हमारे महाराज लोग किसी भी कसाई से मुक्त हो चुके हैं इसीलिए वह दिगंबर है। वह जैन समाज का प्रचार प्रचार करते हैं। इसीलिए वह सारे आडंबर से दूर रहते हैं और वस्त्र धारण नहीं करते है।
- श्वेताम्बर जैन : राकेश जैन ने बताया कि श्वेतांबर समाज के साधु संतलोग सफेद वस्त्र धारण करते है। उसमें भी सीमा है। वह सफेद कपड़ो में ही प्रचार प्रसार करते हैं। इसी स्थानकवासी जैन समुदाय के लोग शास्त्र की पूजा करते हैं। उनका मानना है कि शास्त्र ईश्वर द्वारा लिखा गया है। जो ईश्वर का संदेश है इसलिए वह शास्त्र की पूजा करते हैं। इसके बाद अंतिम में 13 पंथी आते है, इस समुदाय के लोग गुरु को भगवान की तरह पूजते हैं। गुरु को ही भगवान का प्रतिनिधि मानते हैं। राकेश जैन आगे बताया कि सबसे पुराना दिगंबर जैन है।
(खबर इनपुट - सुरेन्द्र गुप्ता, वाराणसी)


