सार
Acharya Satyendra Das Death: राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 34 वर्षों तक रामलला की सेवा करने वाले सत्येंद्र दास के निधन से अयोध्या में शोक व्याप्त है।
Ram Mandir Chief Priest Acharya Satyendra Das Death : भारतीय संस्कृति और भक्ति में समर्पित एक युग का अंत हो गया है। राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार को लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया। सत्येंद्र दास, जिनकी उम्र 87 वर्ष थी, लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से न केवल अयोध्या, बल्कि सम्पूर्ण राम भक्त समाज में शोक की लहर है। राम मंदिर ट्रस्ट ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है।
सत्येंद्र दास: जब टेंट में थे रामलला तबसे कर रहे थे सेवा
आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक प्रेरणा था। उन्होंने 34 वर्षों तक राम जन्मभूमि में रामलला की सेवा की, जिसमें 28 वर्षों तक वह रामलला की पूजा टेंट में करते रहे। जब तक राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हुई, तब तक वह अस्थायी मंदिर में रामलला की सेवा करते रहे। उनके जीवन का उद्देश्य ही भगवान राम के प्रति भक्ति और समर्पण था।
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बहुत पढ़े-लिखे थे Acharya Satyendra Das
सत्येंद्र दास बहुत ही पढ़े-लिखे थे। 1975 में उन्होंने संस्कृत विद्यालय से डिग्री हासिल की और अगले ही साल 1976 में अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के तौर पर काम करना शुरू किया। बाद में, मार्च 1992 में उन्होंने रामलला के मंदिर में पुजारी के रूप में अपनी सेवा प्रारंभ की, और तब उन्हें केवल 100 रुपए महीने का वेतन मिलता था। यह राशि भले ही कम थी, लेकिन उनकी श्रद्धा और समर्पण में कोई कमी नहीं आई। समय के साथ वे राम मंदिर ट्रस्ट के एक महत्वपूर्ण सदस्य बने।
बेहद कठिन था Acharya Satyendra Das का जीवन
सत्येंद्र दास का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उनका स्वास्थ्य बीते कुछ सालों से बिगड़ा हुआ था। हाल ही में ब्रेन हेमरेज के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में भर्ती होने से पहले उन्हें अयोध्या के अस्पताल में इलाज कराया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर उन्हें लखनऊ के एसजीपीजीआई में रेफर किया गया। वह डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर बीमारियों से भी जूझ रहे थे।
सत्येंद्र दास के निधन से राम मंदिर ट्रस्ट और मठ मंदिरों में शोक
आचार्य सत्येंद्र दास के निधन से राम नगरी में शोक का माहौल है। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा, विशेष रूप से बाबरी विध्वंस के समय जब वह रामलला को गोद में लेकर भागे थे, उन दिनों में उन्होंने रामलला की पूजा टेंट में की थी। राम मंदिर ट्रस्ट और मठ मंदिरों ने उनके निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
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